लायक़ और सालेह आदमी हर चीज़ से ज़्यादा क़ीमती

बुख़ारी ने तारीख़े-सग़ीर में यह वाक़िआ नक़्ल किया है। ज़ैद बिन असलम अपने बाप के हवाले से बताते हैं कि उमर बिन ख़त्ताब रज़ी अल्लाहु अन्हु ने अपने असहाब से कहाः तुम लोग अपनी तमन्नाएं बताओ। किसी ने कहा कि मेरी तमन्ना यह है कि मेरा घर दिरहम से भरा होता तो मैं उसको अल्लाह के रास्ते में ख़र्च करता। किसी ने कहाः मेरे पास इस घर के बराबर सोना होता तो मैं उसको अल्लाह के रास्ते में दे देता। किसी ने कहा मेरी तमन्ना है कि यह घर मोतियों से भरा होता और मैं उसको अल्लाह के रास्ते में ख़र्च करता। वग़ैरह उमर रज़ीअल्लाहु अन्हु ने फ़रमायाः लेकिन मेरी तमन्ना तो यह है कि इस घर भर मेरे पास अबू उबैदा बिन अल-जर्राह, मुआज़ बिन जबल और हुज़ैफ़ा बिन यमान जैसे लोग होते और उनको मैं अल्लाह के कामों में इस्तेमाल करता। (अल-तारीख़ अल-सग़ीर, भाग 1, पेज 54)

 

कमाने वाला अपने को बड़ा न समझे

अनस रज़ी अल्लाहु अन्हु कहते हैं कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के ज़माने में दो भाई थे। एक भाई रसूलुल्लाह (स.अ.व.) के पास आया करता था और दूसरा भाई घर के लिए कमाई करता था। कमाई करने वाले ने रसूलुल्लाह (स.अ.व.) से अपने भाई की शिकायत की (कि वह काम नहीं करता, मुझको अकेले ही दोनों के लिए कमाना पड़ता है) आपने फ़रमाया, “शायद तुमको रोज़ी उसी की वजह से मिलती हो।” (सुनन अल-तिर्मिज़ी, हदीस संख्या 2345)

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