एक हदीस
हदीस की किताबों में आख़िरी दौर के बारे में बहुत सी पेशीनगोइयां यानी भविष्यवाणियां की गई हैं। उन्हीं में से एक पेशीनगोई वह है जिसको इमाम अहमद और दूसरे हदीसकारों ने नक़्ल किया है :
हज़रत मिक़्दाद कहते हैं कि उन्होंने रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को यह कहते हुए सुना कि ज़मीन की सतह पर कोई ख़ेमा या घर बाक़ी न रहेगा, मगर यह कि अल्लाह उसमें इस्लाम के कलिमे को दाख़िल कर देगा, चाहे अज़ीज़ की इज़्ज़त के साथ या ज़लील की ज़िल्लत के साथ। अल्लाह या तो उन्हें इज़्ज़त देगा और उनको इस्लाम वालों में से बना देगा या उन्हें ज़लील करेगा तो वे उसके दीन को इख़्तियार कर लेंगे। (मुसनद अहमद, हदीस न. 23814)
यह हदीस बताती है कि आख़िरी ज़माने में इस्लाम हर घर में दाख़िल हो जाएगा। मगर हदीस के अल्फ़ाज़ के मुताबिक़ जो चीज़ घरों के अन्दर दाख़िल होगी वह इस्लाम का कलिमा होगा न कि इस्लाम का सियासी और हुकूमती इक़्तिदार (सत्ता)। कुछ लोगों ने इस पेशेनगोई को सियासी दाख़िले के मानों में ले लिया है इसका नतीजा यह है कि वे लोग सारी दुनिया में इस्लाम का सियासी झंडा लहराने के नाम पर मदऊ (निमंत्रणीय) क़ौमों से सियासी लड़ाई छेड़े हुए हैं। इस बेकार की लड़ाई का नतीजा यह है कि ये लोग इस्लाम से बेज़ार होकर उससे दूर होते जा रहे हैं।
इस पेशेनगोई को सच्चाई बनाने के लिए मुसलमानों को जो काम करना है वह अल्लाह की दा’वत है। उन्हें चाहिए कि वे तौहीद और आख़िरत के रब्बानी पैग़ाम से तमाम क़ौमों को बाख़बर करने में दिलो-जान से लग जाएं, वे इस्लाम को फ़िक्री और बौद्धिक हैसियत से एक मालूम और सम्पूर्ण चीज़ बना दें, ताकि जिसको मानना है वह माने, और जिसको नहीं मानना उस पर दलील क़ायम हो जाए। यानी उनको आख़िरी हद तक अल्लाह का पैग़ाम पहुंचा दिया जाए ताकि उनके पास कोई बहाना बाक़ी न रहे कि उन तक सच्चाई नहीं पहुंची।