बोलने वाला नबी
एक आलिम का कहना है कि जिस आदमी के घर में चन्द हदीसें हैं तो यह ऐसा है जैसे उस घर के अंदर बात करते हुए खुद नबी मौजूद हैं। (जामि' अल-उसूल, इबन अल-असीर, भाग 1, पेज 194)
यह बात वैसे तो एक सादा सी बात है, लेकिन है बहुत अहम। आज इन्सान के पास सिर्फ़ पैग़म्बरे-इस्लाम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ही का कलाम नहीं है, बल्कि दूसरे पैग़म्बरों का कलाम भी मौजूद है। मसलन तौरात और इंजील में बहुत से नबियों के कलाम मौजूद हैं, मगर इन किताबों के बारे में नहीं कहा जा सकता कि जिस घर में ये किताबें हैं, उस घर में अंबिया बात करते हुए मौजूद हैं, जबकि पैग़म्बरे इस्लाम के बारे में यह बात बिल्कुल लफ़्ज़ी तौर पर दुरुस्त है।
इस फ़र्क़ की वजह यह है कि दूसरे पैग़म्बरों का जो कलाम आज मज़हबी किताबों में मौजूद है वह भरोसे के लायक़ नहीं है। उनमें मिलावट और नक़्ल के नतीजे में बहुत-सी तब्दीलियां हो चुकी हैं। इस तरह वैसे तो पैग़म्बर का कलाम मौजूद है लेकिन वह इस रूप में नहीं है कि उन पर भरोसा किया जा सके।
जबकि पैग़म्बर-इस्लाम (स.अ.व.) का मामला बिल्कुल अलग है। आपका कलाम पूरी तरह पैग़म्बर का कलाम है। आपके कलाम के संकलन और सम्पादन में इतनी ज़्यादा मेहनत और एहतियात की गई है और उसकी शुद्धता और स्वस्थता का इतना ज़्यादा ध्यान रखा गया है कि आज जो ‘हदीस का संग्रह’ हमारे पास मौजूद है, उसके बारे में पूरे भरोसे के साथ कहा जा सकता है कि वे पैग़म्बर के शब्द हैं।
इस तरह पैग़म्बरे इस्लाम जैसे हमेशा के लिए हमारे बीच में मौजूद हैं। वह इन हदीसों के ज़रिए बराबर हम से बात करते हैं। वह हमको हिदायत दे रहे हैं। वह हर मौक़े पर हमारी रहनुमाई कर रहे हैं। वह हर अंधेरे में हमको रोशनी दिखा रहे हैं।
लेकिन यह बोलने वाला रसूल सिर्फ़ उस आदमी के लिए है जो अपने अन्दर सुनने वाला कान रखता हो। जिस आदमी के पास सुनने वाले कान न हों, उसके घर में बोलने वाला रसूल तो होगा, लेकिन वह उसकी आवाज़ न सुन सकेगा। वह उसी तरह अन्धा-बहरा बना रहेगा जिस तरह पैग़म्बर के ज़माने में बहुत से लोग उसकी बात को सुनने और समझने के लिए अन्धे और बहरे बने रहे। वह इन्सान भी कैसा बदनसीब और महरूम इन्सान है जिसके पास बोलने वाला नबी मौजूद हो लेकिन वह उसे सुनने वाला न बन सके।