शहद का सबक़
शहद की मक्खियां फूलों का जो रस जमा करती हैं, वह सब का सब शहद नहीं होता। उसका सिर्फ़ एक तिहाई हिस्सा शहद बनता है। शहद की मक्खियों को एक पौंड शहद के लिए बीस लाख फूलों का रस हासिल करना पड़ता है। उसके लिए मक्खियां क़रीब तीस लाख उड़ानें करती हैं और इस दौरान वह कुल मिलाकर क़रीब पचास हज़ार मील तक का सफ़र तय करती हैं। रस जब ज़रूरी मात्रा में जमा हो जाता है तो इसके बाद शहद बनाने का काम शुरू होता है।
शहद शुरू-शुरू में पानी की तरह पतला होता है। शहद तैयार करने वाली मक्खियां अपने परों को पंखे की तरह इस्तेमाल करके अतिरिक्त पानी को भाप की तरह उड़ा देती हैं। जब यह पानी उड़ जाता है तो इसके बाद एक मीठा द्रव बाक़ी रह जाता है, जिसको मक्खियां चूस लेती हैं। मक्खियों के मुंह में ऐसी ग्रंथियां होती हैं जो मीठे द्रव को शहद में बदल देती हैं। अब मक्खियां इस तैयार शहद को छत्ते के ख़ास तौर पर बने हुए सूराख़ों में भर देती हैं। ये सूराख दूसरी मक्खियां मोम के ज़रिए बेहद कारीगरी के साथ बनाती हैं। मक्खियां शहद को सूराख़ों में भर कर उसको ‘डिब्बाबन्द’ खाद्य की तरह सुरक्षित कर देती हैं, ताकि बाद को वह इन्सान के काम आ सके।
इस तरह की बेशुमार व्यवस्थाएं हैं जो शहद की तैयारी में की जाती हैं। ख़ुदा ऐसा कर सकता था कि चमत्कारिक ढंग से अचानक शहद पैदा कर दे या पानी की तरह शहद का झरना ज़मीन पर बहा दे। पर उसने ऐसा नहीं किया। ख़ुदा हर क़िस्म की सामर्थ्य रखने के बावजूद शहद को एक व्यवस्था के तहत तैयार करता है, ताकि इन्सान को सीख मिले। वह जाने कि ख़ुदा ने दुनिया की व्यवस्था किस ढंग पर बनाई है और किन सिद्धांतों और नियमों को अपना कर ख़ुदा की इस दुनिया में कोई शख़्स कामयाब हो सकता है।
शहद की मक्खी जिस तरह काम करती है, उसे योजनाबद्ध कार्य कहते हैं। यही उसूल इन्सान के लिए भी है। इन्सान भी सिर्फ़ उस वक़्त कोई सार्थक सफलता अर्जित कर सकता है, जबकि वह योजनाबद्ध कार्य के ज़रिए अपने मक़्सद तक पहुंचने की कोशिश करे। संगठित और योजनाबद्ध कार्य ही इस दुनिया में कामयाबी हासिल करने का एकमात्र विश्वसनीय तरीक़ा है, शहद की मक्खी के लिए भी और इन्सान के लिए भी।