एक मिसाल
सच्चे इन्सानों को लोगों के बीच किस तरह रहना चाहिए इसकी बेहतरीन मेकेनिकल मिसाल शॉक एब्ज़ारबर (Shock absorber) है। शॉक एब्ज़ारबर का शाब्दिक अर्थ है— झटके को सहने वाला एक यंत्र जो मोटर गाड़ियों में लगाया जाता है और एक्सल और बॉडी के बीच एक किस्म के गद्दे का काम करता है। वह सड़क की सतह पर ऊंच-नीच से पैदा होने वाले झटकों को बॉडी तक पहुंचने से रोकता है:
A device which on an automobile, acts as a cushion between the axles and the body and reduces the shocks on the body produced by undulations of the road surface (IX / 159).
अगर आप ट्रेक्टर पर 50 किलोमीटर का सफ़र करें तो आप अपनी मंजिल पर इस तरह पहुंचेंगे कि आप थके हुए होंगे। इसके विपरीत जब आप एक अच्छी मोटर कार पर 50 किलोमीटर की यात्रा करें तो आप मंजिल पर इस तरह उतरते हैं कि आप बिल्कुल तरो-ताज़ा होते हैं।
दोनों गाड़ियों में इस अन्तर का कारण क्या है? इसका कारण शॉक एब्ज़ारबर है। कार जब चलती है तो ज़्यादातर उसका पहिया ऊपर-नीचे होता है, बॉडी ऊपर नीचे नहीं होती। इसके विपरीत जब ट्रैक्टर चलता है तो उसका पहिया और बॉडी दोनों ऊपर-नीचे होते रहते हैं। दूसरे शब्दों में कार उस गाड़ी का नाम है कि जो झटका गाड़ी को लगा वह गाड़ी तक रह गया, वह मुसाफिर तक नहीं पहुंचा। जबकि ट्रैक्टर उस गाड़ी का नाम है कि जो झटका गाड़ी को लगा वह गाड़ी तक नहीं रुका, बल्कि वह मुसाफ़िर तक पहुंच गया।
सच्चा इन्सान दुनिया में कार की तरह चलता है, और झूठा इन्सान ट्रैक्टर की तरह। सच्चे इन्सान के सीने में एक शॉक एब्ज़ारबर होता है जो तमाम झटकों और सदमों को अन्दर ही अन्दर सहता रहता है, जबकि झूठे इन्सान के अन्दर शॉक एब्ज़ारबर नहीं होता। वह हर झटके को दूसरों तक पहुंचाता रहता है। अच्छा समाज बनाना है तो सच्चे इन्सान बनाइए, क्योंकि दरअसल ये झूठे इन्सान ही हैं जो समाज को बिगाड़ और फ़साद से भर देते हैं।