कुछ मिसालें
हमारे आसपास जो कुछ घटित हो रहा है, उनका गहराई के साथ अध्ययन किया जाए तो यह बात आसानी से समझी जा सकती है कि कल्चर का फ़र्क या कल्चर की समानता असम्बद्ध चीज़ें हैं। इनका एकता से कोई अनिवार्य सम्बन्ध नहीं। चंद मिसालें लीजिए:
बम्बई में पारसी और हिन्दू हज़ार बरस से एक साथ रहते हैं। आप जानते हैं कि पारसी समाज एक बंद समाज है। वे लोग अपने से बाहर शादी-ब्याह को सही नहीं समझते। बम्बई के हिन्दुओं और पारसियों में आपस में शादी-ब्याह नहीं होता (कुछ अपवादों को छोड़ कर, जिन्हें आम परम्परा नहीं कहा जा सकता) इसके बावजूद वहां कभी हिन्दुओं और पारसियों में लड़ाई नहीं हुई। दोनों के बीच बहुत अच्छे और शांतिपूर्ण सम्बन्ध हैं। इससे उल्टी मिसाल हिन्दुओं और सिखों की है। आप जानते हैं कि हिन्दुओं और सिखों में आपसी शादी-ब्याह का बेरोकटोक रिवाज था, पर इन्हीं दोनों फ़िरक़ों में आज पंजाब में इतने बड़े पैमाने पर लड़ाई हो रही है जैसे कि एक-दूसरे के दुश्मन हों।
इसी तरह, मसलन, कहा जाता है कि सभी लोगों की भाषा एक हो जाए तो इसके बाद लोगों के बीच एकता पैदा हो जाएगी, पर यह भी एक निरर्थक और बेफ़ायदा उपाय है। स्विटज़रलैंड में कई भाषाएं प्रचलित हैं। उनमें से तीन भाषाओं को सरकारी भाषा की हैसियत प्राप्त है- फ्रेंच, जर्मन, इटालियन। लेकिन भाषाओं की ज़्यादा तादाद होने के बावजूद उन लोगों के बीच ज़बरदस्त एकता और सदभाव है। बल्कि स्विटज़रलैंड दुनिया सबसे ज़्यादा शांतिपूर्ण देश है। इससे उल्टी मिसाल पाकिस्तान की है। वहां अधिकृत रूप से केवल एक सरकारी भाषा है। यानी उर्दू। इसके बावजूद पाकिस्तान में इतने आपसी झगड़े हैं कि पाकिस्तान को बने हुए 40 साल से ज़्यादा बीत गए, पर वहां का झगड़ा आज तक ख़त्म नहीं हुआ।
इस तरह की कई मिसालें हैं, जिनसे पता चलता है कि एकता, इत्तेहाद और सदभाव का ताल्लुक़ लोगों के विचार और सोच से है न कि उनके ज़ाहिरी रस्मो-रिवाज से। देश के नागरिकों में यदि सही सोच मौजूद हो और वे ज़िन्दगी गुज़ारने का राज़ जानते हों तो वे ऊपरी फ़र्क़ के बावजूद मिल-जुल कर रहेंगे। इसके विपरीत यदि उनकी सोच दुरुस्त न हो, वे ज़िन्दगी के रहस्य से परिचित न हों तो वे एक-दूसरे से लड़ते-झगड़ते रहेंगे– चाहे उनका ज़ाहिरी कल्चर एक सा क्यों न हो।
सच्चाई यह है कि ज़िन्दगी के मामलों की दुरुस्तगी में असली अहमियत मानसिक रुझान (Attitude of mind) की है। अगर हम इस देश में एकता और आपसी समझ पैदा करना चाहते हैं तो हमें लोगों के नज़रिए को दुरुस्त करना होगा। इस उद्देश्य को पाने का यही एकमात्र रास्ता है और इसके सिवा कोई और रास्ता नहीं।
यह एकमात्र रास्ता आपसी सम्मान और सद्भावना का रास्ता है। लोगों में यह मानसिकता व मिज़ाज पैदा किया जाए कि वे दूसरों के साथ सद्भावनापूर्ण व्यवहार करें, वे हर इन्सान का सम्मान करें चाहे वह अपनी बिरादरी का हो या अपने बाहर की बिरादरी का। यही मिज़ाज एकता और सद्भावना की असली बुनियाद है। यह मानसिकता जहां होगी वहां एकता होगी। जहां यह मिज़ाज न हो वहां किसी और उपाय से एकता पैदा नहीं की जा सकती।