एक तरफ़ा तरीका

दिल्ली के एक अंग्रेजी अख़बार में मैंने एक लेख पढ़ा। उसका शीर्षक था कि 'दोतरफा तरीका बेहतरीन तरीक़ा है' (Bilateralism is the Best) यानी दो वर्गों के बीच विवाद हो तो उसको हल करने का तरीका यह है कि दोनों 'फिफ्टी फिफ्टी' पर राज़ी हो जाएं। पचास प्रतिशत जिम्मेदारी एक पक्ष ले और पचास प्रतिशत जिम्मेदारी दूसरा पक्ष। इस तरह मामले को ख़त्म कर दिया जाए।

यह बात ग्रामर (व्याकरण) के लिहाज़ से सही, पर हक़ीक़त के हिसाब से ग़लत है। क्योंकि आज की दुनिया में यह अव्यावहारिक है। इस दुनिया में कोई विवाद उसी स्थिति में ख़त्म हो सकता है जबकि एक पक्ष एकतरफा तौर पर इसको ख़त्म करने पर राजी हो जाए। इस लिहाज़ से यह कहना ज़्यादा सही होगा कि एकतरफ़ा तरीक़ा बेहतरीन तरीका है:

Unilateralism is the Best.

पैग़म्बरे- रे-इस्लाम ने झगड़ों और शिकायतों को ख़त्म करने का यही तरीका बताया है। हदीस में कहा गया है: “जो शख्स तुम्हारे साथ बुरा सलूक करे उसके साथ तुम अच्छा सलूक करो।” (कुन्ज़ल उम्माल, हदीस संख्या 6929) यानी प्रतिक्रिया और रद्दे-अमल का तरीका न अपनाओ। और न इसका इंतजार  करो कि दूसरा पक्ष पचास प्रतिशत झुके तो तुम भी पचास प्रतिशत झुक जाओ। ख़ुदापरस्त इन्सान के लिए यह हुक्म है कि वह एकतरफा सदाचार (हुस्ने-सलूक) का तरीका अख्तियार करे। इसी एकतरफ़ा सदाचार का नाम सब्र है। और इसी सब्र में बेहतर इन्सानी समाज का रहस्य छुपा हुआ है।

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