हदीस में वर्णन है कि पैग़ंबर-ए-इस्लाम ने मोमिन की तारीफ़ करते हुए फ़रमाया— “मोमिन वह है जिससे लोगों की जान और माल सुरक्षित है।” (मुसनद अहमद, हदीस नं० 8,931)
किसी समाज में रहने के दो तरीक़े हैं। एक यह कि इंसान लोगों के बीच अमन के साथ रहे और दूसरा तरीक़ा यह है कि वह दूसरों से लड़ाई-झगड़ा करता रहे। इस हदीस के अनुसार ईमानी तरीक़ा यह है कि इंसान लोगों के बीच शांतिपूर्ण नागरिक बनकर रहे। दूसरों की जान-माल व सम्मान के लिए वह समस्या न बने। वह किसी हाल में दूसरों के ख़िलाफ़ हिंसा का तरीक़ा न अपनाए।
जीवन का वह तरीक़ा क्या है जिसमें समाज के लोग एक-दूसरे के अत्याचार से सुरक्षित हों। वह तरीक़ा यह है कि शिकायत के बावजूद इंसान अपने संतुलन को बरक़रार रखे। दूसरों से शिकायत को वह अपने सीने में दफ़न कर दे। वह अपने सीने की आग को दूसरों के ऊपर उड़ेलने से बचे। इस प्रकार का समाज वह समाज है, जहाँ लोग एक-दूसरे से सुरक्षित रहकर जीवन गुज़ारें। शांतिपूर्ण समाज आदर्श इंसानी समाज है। इसके विपरीत जिस समाज में हिंसा हो, वह हैवानी समाज है, न कि आदर्श समाज।