इस्लाम के लिए जंग का वातावरण इतना ही अवांछनीय है, जितना व्यापार के लिए नफ़रत व हिंसा का वातावरण अवांछनीय है। व्यापार शांति और संतुलन के वातावरण में सफल होता है। इसी प्रकार इस्लाम के उद्देश्य केवल शांति के हालात और सामान्य संबंधों द्वारा प्राप्त किए जा सकते हैं। हदीस में वर्णन है, “ऐ लोगो, तुम दुश्मन से मुठभेड़ की तमन्ना न करो, बल्कि तुम ईश्वर से शांति माँगो।” (बुख़ारी, किताबुल जिहाद)
जंग करने वाले हमेशा राजनीतिक सत्ता की प्राप्ति के लिए जंग करते हैं और राजनीतिक सत्ता इस्लाम में कोई ऐसी चीज़ नहीं, जिसकी प्राप्ति के लिए जंग की जाए। क़ुरआन के अनुसार, राजनीतिक सत्ता इस्लाम के मानने वालों का निशाना नहीं, बल्कि वह एक अमर-ए-मौऊद है (24:55)। क़ुरआन के अनुसार, सत्ता का मालिक ईश्वर है। वह जिसे चाहता है, उसे देता है और जिससे चाहता है, उससे इसे छीन लेता है (2:26)। यही कारण है कि सत्ता और राजनीतिक विजय कभी एक के हिस्से में आती है और कभी दूसरे के हिस्से में (2:140)।
इस क़ुरआनी हक़ीक़त को दूसरे शब्दों में इस तरह बताया जा सकता है कि राजनीतिक सत्ता का मिलना या राजनीतिक सत्ता का छिन जाना दोनों प्रकृति के नियमों के तहत पेश आते हैं, सत्ता न किसी गिरोह को उसकी कोशिश से मिलती है और न किसी दूसरे गिरोह की साज़िश इसे किसी से छीन सकती है।