हुदैबिया संधि

हुदैबिया संधि क्या है? हुदैबिया संधि इस्लाम के प्रांरभिक इतिहास की एक अहम घटना है। जब यह संधि हुई तो इसके बाद क़ुरआन में यह आयत उतरी— “यह संधि तुम्हारे लिए एक खुली जीत है।”

 पैग़ंबर-ए-इस्लाम ने अपना मिशन 610 ई० में आरंभ किया। यह मिशन एकेश्वरवाद का मिशन था। उस समय अरब में बहुत से अनेकेश्वरवादी लोग रहते थे। यह लोग आपके मिशन को पसंद नहीं करते थे। अतः यह लोग आपके कट्टर विरोधी बन गए। यहाँ तक कि उन्होंने आपके विरुद्ध लड़ाई छेड़ दी। कई वर्ष लड़ाई का माहौल क़ायम रहा। लड़ाई के माहौल के कारण निमंत्रण और निर्माण का कार्य संतुलित रूप से जारी रखना संभव न रहा।

 इस प्रतिकूल (unfavorable) वातावरण को समाप्त करने के लिए पैग़ंबर-ए-इस्लाम ने अपने विरोधियों से सुलह की बातचीत आरंभ कर दी। यह बातचीत हुदैबिया नामक स्थान पर हुई। वह लोग कड़ी शर्तें पेश करते रहे, दो सप्ताह की बातचीत के बाद पैग़ंबर-ए-इस्लाम ने यह किया कि अपने विरोधियों की प्रस्तुत की हुई सारी शर्तों को एकतरफ़ा तौर पर मानते हुए उनसे शांति समझौता कर लिया और इस प्रकार जंग की स्थिति को समाप्त कर दिया और अपने तथा विरोधियों के बीच शांति की स्थिति स्थापित कर दी।

 इस संधि का परिणाम यह हुआ कि इस्लाम के अनुयायियों को निमंत्रण और निर्माण के अवसर प्राप्त हो गए। अतः सकारात्मक निर्माण का काम तेज़ी से जारी हो गया। इसके बाद केवल 2 वर्ष के अंदर इस्लाम को इतनी मज़बूती प्राप्त हुई कि शीघ्र रक्त बहाए बिना ही पूरे अरब में इस्लाम का प्रभुत्व स्थापित हो गया।

 हुदैबिया संधि कोई विशेष प्रकार की घटना नहीं, यह प्रकृति का एक सामान्य नियम है। दूसरे शब्दों में इसे एडजस्टमेंट की पॉलिसी कहा जा सकता है। वर्तमान संसार में कोई व्यक्ति या समुदाय अकेला नहीं है, बल्कि यहाँ दूसरे बहुत से लोग मौजूद हैं। हर एक का इंट्रेस्ट अलग-अलग है। इस आधार पर बार-बार एक-दूसरे के बीच समस्याएँ पैदा होती हैं।

 ऐसी स्थिति में केवल दो संभव रास्ते हैं समस्याओं से टकराव शुरू कर देना या समस्याओं की उपेक्षा करते हुए आगे बढ़ जाना। पहला तरीक़ा जंग का तरीक़ा है और दूसरा तरीक़ा सुलह का तरीक़ा। कु़रआन में वर्णन है— “सुलह बेहतर है” (4:128) यानी सुलह का तरीक़ा ज़्यादा फ़ायदेमंद है। पैग़ंबर-ए-इस्लाम ने इसी क़ुरआनी मार्गदर्शन पर अमल करते हुए हुदैबिया संधि का मामला किया। यह संधि इस्लाम के लिए विजयी साबित हुई।

 सुलह या एडजस्टमेंट का यह तरीक़ा स्वयं प्रकृति का तरीक़ा है। उदाहरण के रूप में एक बहते हुए झरने को लीजिए। आप देखेंगे कि झरने के रास्ते में जब कोई पत्थर आता है तो वह पत्थर को तोड़ने का प्रयत्न नहीं करता, वह पत्थर के किनारे से रास्ता निकालकर आगे बढ़ जाता है। इसी प्रकार जब एक व्यक्ति सड़क पर अपनी गाड़ी दौड़ाता है तो वह सामने की ओर से आने वाली गाड़ी से टकराता नहीं, बल्कि वह किनारे की तरफ़ मुड़कर आगे बढ़ जाता है।

 इसी समझौतावादी तरीक़े का नाम हुदैबिया है। हुदैबिया के तरीक़े को एक वाक्य में इस प्रकार बताया जा सकता है

“समस्याओं को नज़रअंदाज़ कीजिए और अवसरों का इस्तेमाल कीजिए।”

Ignore the problems and avail the opportunities.”

 यह एक चिरस्थायी नियम है जिसका संबंध पूरे मानव जीवन से है। ख़ानदान का मामला हो या समाज का मामला या कोई अंतर्राष्ट्रीय मामला, हर जगह सफल जीवन का यही एक अकेला नियम है। सुलह हुदैबिया छोड़ने का परिणाम केवल टकराव है और टकराव से कोई समस्या हल नहीं होती। सुलह हुदैबिया का तरीक़ा अगर जीवन है तो टकराव और जंग का तरीक़ा केवल मौत।

 सुलह हुदैबिया का तरीक़ा वर्तमान संसार में सफलता का अकेला तरीक़ा है। यह तरीक़ा इंसान को नकारात्मक सोच से हटाकर सकारात्मक सोच की तरफ़ लाता है। यह इंसान को इस नुक़सान से बचाता है कि वह टकराव में अपना समय नष्ट करे और मुमकिन दायरे में उपस्थित अवसरों को इस्तेमाल न कर सके। सुलह हुदैबिया का तरीक़ा इंसान को इस योग्य बनाता है कि वह अपने अहित (disadvantage) को हित (advantage) में परिवर्तित कर ले, अपने माइनस को प्लस बना सके। वह अपने ‘नहीं’ में ‘है’ का राज़ जान ले।

Maulana Wahiduddin Khan
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