शांति  की ताक़त

हदीस में वर्णन है कि ईश्वर नरमी पर वह चीज़ देता है, जो वह सख़्ती पर नहीं देता (सही मुस्लिम, किताबुल बर)। इस हदीस के अनुसार, शांतिपूर्ण सक्रियतावाद (peaceful activism) को हिंसावादी सक्रियतावाद (violent activism) के ऊपर स्पष्ट श्रेष्ठता प्रदान की गई है।

इस हदीस में जो बात कही गई है, वह कोई रहस्यमय बात नहीं। यह एक साधारण और ज्ञात प्राकृतिक वास्तविकता है। जंग और हिंसा की स्थिति में यह होता है कि विभिन्न पक्षों के बीच नफ़रत और दुश्मनी भड़कती है, मौजूदा संसाधन बरबाद हो जाते हैं। दोनों ओर के बेहतरीन लोग क़त्ल किए जाते हैं, पूरा समाज नकारात्मक मानसिकता का जंगल बन जाता है। ज़ाहिर है कि ऐसे वातावरण में निर्माण और दृढ़ता का कोई कार्य नहीं किया जा सकता। जंग व हिंसा में हानि तो निश्चित है, लेकिन हानि के बावजूद इसमें कोई लाभ नहीं।

इसके विपरीत अमन का माहौल हो तो लोगों के बीच संतुलित और सामान्य संबंध स्थापित होते हैं। दोस्ती और मुहब्बत में वृद्धि होती है। अनुकूल वातावरण के नतीजे में रचनात्मक गतिविधियाँ प्रगति पाती हैं। उपस्थित माध्यमों को प्रगतिशील कार्यों में इस्तेमाल करना संभव हो जाता है। लोग सकारात्मक मानसिकता में जीते हैं, जिसके आधार पर ज्ञानात्मक और वैचारिक उन्नति होती है।

जंग की सबसे बड़ी हानि यह है कि वह काम के अवसरों को बाधित करती है। इसके मुक़ाबले में अमन का सबसे बड़ा फ़ायदा यह है कि वह काम के अवसरों को अंतिम सीमा तक खोल देता है। जंग से हमेशा और ज़्यादा नुक़सान होता है और अमन से हमेशा और ज़्यादा फ़ायदा। यही कारण है कि इस्लाम हर क़ीमत पर और अंतिम सीमा तक जंग और टकराव से बचने की शिक्षा देता है और अमन को हर क़ीमत पर क़ायम करने का हुक्म देता है।

Maulana Wahiduddin Khan
Book :
Share icon

Subscribe

CPS shares spiritual wisdom to connect people to their Creator to learn the art of life management and rationally find answers to questions pertaining to life and its purpose. Subscribe to our newsletters.

Stay informed - subscribe to our newsletter.
The subscriber's email address.

leafDaily Dose of Wisdom