पैग़ंबर-ए-इस्लाम ने फ़रमाया कि दुश्मन से मुठभेड़ की तमन्ना न करो, तुम ईश्वर से अमन माँगो (बुख़ारी, हदीस नं० 2,965)। इसका मतलब यह है कि कोई शख़्स अगर तुम्हारा दुश्मन बन जाए तो ऐसा न करो कि तुम उसके दुश्मन बनकर उससे लड़ना शुरू कर दो, बल्कि दूसरे पक्ष की दुश्मनी के बावजूद तुम उसके साथ उपेक्षा का तरीक़ा धारण करो। दुश्मनी के हालात के बावजूद तुम्हारा तरीक़ा लड़ाई से बचने का होना चाहिए, न कि अपने आपको लड़ाई में फँसा लेने का।
“ईश्वर से अमन माँगो” का मतलब यह है कि तुम टकराव के बजाय अमन का रास्ता अपनाओ और अपनी अमनवादी कोशिशों के साथ ईश्वर को भी दुआओं के द्वारा उसमें शामिल करो। तुम्हारी दुआ यह नहीं होनी चाहिए कि ऐ ईश्वर, दुश्मन को हलाक कर दे, बल्कि यह होनी चाहिए कि ऐ ईश्वर, मुझे सामर्थ्य दे कि मैं लोगों की दुश्मनी के बावजूद हिंसा और टकराव का तरीक़ा न अपनाऊँ, बल्कि अमन के रास्ते पर अपने जीवन की यात्रा तय करता रहूँ ।
इससे मालूम हुआ कि प्रकृति के नक़्शे के अनुसार इस दुनिया में अमन की हालत सामान्य नियम (general rule) की है और हिंसा की हैसियत केवल एक अपवाद (exception) की और ज़्यादा इससे यह मालूम होता है कि अगर प्रत्यक्ष रूप से कोई शख़्स या गिरोह आपका दुश्मन हो तो उससे निपटने का केवल यही एक तरीक़ा नहीं है कि उससे मुठभेड़ की जाए, बल्कि ज़्यादा बेहतर और प्रभावी तरीक़ा यह है की अमन की युक्ति से दुश्मनी की समस्या का हल निकाला जाए। अमन की शक्ति हिंसा की शक्ति के मुक़ाबले में ज़्यादा सफल भी है और ज़्यादा लाभदायक भी।