बहुत से लोग यह विचार रखते हैं कि अमुक समुदाय हमारा दुश्मन है। फिर इस परिकल्पना के तहत वे उस क़ौम के ख़िलाफ़ हिंसक लड़ाई छेड़ देते हैं, ताकि उसकी दुश्मनी के अंजाम से अपने आपको बचा सकें, मगर यह परिकल्पना भी ग़लत है और इस परिकल्पना के ऐतबार से बनाई जाने वाली कार्य-प्रणाली भी ग़लत।
दुश्मनी हाथ की उंगली की तरह इंसानी अस्तित्व का कोई स्थायी हिस्सा नहीं, वह मानव अस्तित्व का एक ऊपरी भाग है। सकारात्मक युक्ति के द्वारा हर दुश्मनी को समाप्त किया जा सकता है। दुश्मनी की मिसाल ऐसी है, जैसे ग्लास के ऊपर लगी हुई मिट्टी। ऐसी मिट्टी को बड़ी सरलता के साथ पानी से धोकर साफ़ किया जा सकता है। जैसे कि ग्लास में मिट्टी का लगना समस्या नहीं, बल्कि असल समस्या यह है कि आपके पास मिट्टी को धोने के लिए साफ़ पानी न हो।
ताली हमेशा दो हाथ से बजती है। एक हाथ से कभी ताली नहीं बजती। इसी प्रकार दुश्मनी भी द्विपक्षीय व्यवहार है। अगर कोई व्यक्ति आपका दुश्मन बने तो आप स्वयं उसके दुश्मन न बनें। इसके बाद दुश्मनी अपने आप समाप्त हो जाएगी। दुश्मन के साथ दुश्मनी न करना ही दुश्मनी की समस्या का सबसे कारगर अमल है।