हदीसों में विभिन्न शैली में ख़ामोशी की महत्ता बताई गई है। एक रिवायत के अनुसार, पैग़ंबर-ए-इस्लाम ने फ़रमाया— “जो शख़्स ख़ामोश रहा, उसने निजात पाई।” (तिरमिज़ी, हदीस नं० 2,501)
इसका मतलब यह नहीं है कि इंसान बोलना छोड़ दे, वह बिल्कुल ख़ामोश रहे। इसका मतलब वास्तव में यह है कि इंसान ख़ामोश रहकर सोचे। वह पहले ख़ामोश रहकर मामले को समझे, इसके बाद वह बोले। यह निःसंदेह एक बेहतरीन तरीक़ा है। इंसान को चाहिए कि नियमानुसार अपना प्रशिक्षण करके यह आदत डाले कि वह बोलने से ज़्यादा ख़ामोश रहे। वह बोले तो उस समय बोले, जबकि वह सोचने का काम कर चुका हो।
यह तरबियत इस प्रकार की जा सकती है कि रोज़ाना के नियम की बातचीत में वह इरादे से अपने आपको इसका आदी बनाए। अगर इंसान अपनी रोज़ाना की मामूली बातचीत में यह आदत डाल ले कि बोलने से ज़्यादा ख़ामोश रहे तो अपनी इस आदत के आधार पर वह उस समय भी ऐसा ही करेगा, जबकि रुटीन से अलग कोई बात पेश आ गई हो।
सामान्यतः लोग यह करते हैं कि उनके सामने कोई बात आती है तो वे फ़ौरन जो जवाब उनके ज़हन में आता है, उसे अपनी ज़ुबान से बोलना शुरू कर देते हैं। यह तरीक़ा सही नहीं। सही तरीक़ा यह है कि पहले सोचने का अमल किया जाए और फिर उसके बाद बोलना शुरू किया जाए। जो लोग ऐसा करें, वे इस अंजाम से बच जाएँगे कि वे अपने बोले हुए शब्दों पर पछताएँ। वे अपने कहे हुए बोल को लौटाना चाहें, हालाँकि किसी का कहा हुआ बोल दोबारा उसकी तरफ़ लौटने वाला नहीं।
सामान्यतः ऐसा होता है कि जब कोई स्वभाव के विरुद्ध बात सामने आती है तो इंसान भड़ककर बुरे तरीक़े से बात करने लगता है। इससे बचने का सरल तरीक़ा यह कि रोज़ाना की साधारण बातचीत में इंसान इसकी आदत डाले कि वह पहले सोचे, फिर बोले। जब ऐसा होगा कि रोज़ाना की बातचीत में वह बोलने से पहले सोचने का आदी हो जाएगा तो वह अपनी इस आदत के आधार पर भी अपने स्वभाव के विरुद्ध बातचीत में भी इसी तरीक़े पर पाबंद रहेगा। आम बातचीत में अपने आपको वश में रखकर बात करना उसे इस योग्य बना देगा कि वह हंगामे वाले अवसरों पर भी अपने आप पर वश रखकर बोले, वह ज़हनी अनुशासन के साथ बातचीत करे।
दुनिया के अक्सर उपद्रव, शाब्दिक उपद्रव हैं। कुछ शब्द नफ़रत और हिंसा की भावना को भड़काते हैं और कुछ दूसरे शब्द शांति और मानवता के वातावरण को स्थापित करते हैं। अगर इंसान केवल यह करे कि वह बोलने से पहले सोचे और अपनी भावनाओं को वश में रखकर बोले तो ज़्यादातर उपद्रव पैदा होने से पहले ही समाप्त हो जाएँगे।
अपने आपको वश में रखकर बात करना एक उच्च मानवीय गुण है। यह गुण उन लोगों में होता है, जो अपने आपका पुनः निरीक्षण करते रहें, जो अपने कथन व कर्म का हिसाब लेते रहें।
इंसान को चाहिए कि जब वह कोई बात सुने तो तुरंत उसका जवाब न दे, वह तुरंत अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त न करे। वह एक क्षण के लिए ठहरकर सोचे कि कहने वाले ने क्या बात कही है और मेरी तरफ़ से इसका बेहतर जवाब क्या हो सकता है। बात को सुनकर एक लम्हे के लिए ठहरना इस बात की यक़ीनी ज़मानत है कि वह सुनी हुई बात का सही उत्तर देगा, वह पत्थर का जवाब पत्थर से देने के बजाय पत्थर का जवाब फूल से देने में सफल हो जाएगा।