एक शिक्षित मुसलमान जो अमेरिका में रहते हैं, उन्होंने एक मुलाक़ात के दौरान कहा कि आजकल अमेरिका में इस्लाम की छवि इतनी ख़राब हो गई है कि अपने को मुसलमान बताते हुए घबराता हूँ। कोई मुझसे मेरा मज़हब पूछता है तो मैं कहता हूँ कि मैं मानवता के मज़हब को मानता हूँ। अगर मैं अपना मज़हब इस्लाम बताऊँ तो वह तुरंत कहेगा, फिर तो तुम एक दहशतगर्द हो।
Then you must be a terrorist.
उन्होंने कहा कि इस्लाम की यह छवि आधुनिक मीडिया ने बनाई है। मैंने कहा कि नहीं, बल्कि इस्लाम की यह छवि मुसलमानों ने स्वयं बनाई है। असल बात यह है कि मुसलमान जगह-जगह इस्लाम के नाम पर हिंसा के आंदोलन चला रहे हैं। इसी को मीडिया के लोग रिपोर्ट करते हैं। मुसलमान अपने यह आंदोलन चूँकि इस्लाम के नाम पर चलाते हैं, इसलिए मीडिया में उनके बारे में रिपोर्ट भी इस्लाम से जोड़कर दी जाती हैं। जब मुसलमान स्वयं इस प्रकार के आंदोलनों को इस्लाम के नाम पर चला रहे हों तो मीडिया इन्हें किसी और नाम से कैसे रिपोर्ट करेगा।
उन्होंने कहा कि इस प्रकार के हिसांत्मक आंदोलन केवल कुछ मुसलमान चलाते हैं, न कि सारे मुसलमान। फिर इनके आधार पर सारे मुसलमानों के बारे में नकारात्मक राय बनाना कैसे सही हो सकता है। मैंने कहा यह सही है कि इस प्रकार के आंदोलन थोड़े मुसलमान चलाते हैं, मगर इसी के साथ यह भी सही है कि शेष मुसलमान इन आंदोलनों की खुली निंदा नहीं करते। वे इनके बारे में ख़ामोशी का तरीक़ा धारण किए हुए हैं। इसलिए स्वयं इस्लामी नियम के अनुसार यह कहना सही होगा कि इस्लाम के नाम पर नफ़रत और हिंसा के इन आंदोलनों को चलाने के लिए अगर थोड़े लोग सीधे तौर पर (directly) ज़िम्मेदार हैं तो शेष लोग इसके लिए अप्रत्यक्ष रूप से (indirectly) ज़िम्मेदार हैं।
मौजूदा ज़माने में मुसलमानों की यह नीति अत्यंत खेदजनक है। इस्लामी राज्य और निज़ाम-ए-मुस्तफ़ा और इस्लामी जिहाद के नाम पर ऐसे काम किए जा रहे हैं, जो सरासर इस्लाम के ख़िलाफ़ हैं। जो लोगों को ईश्वर के रास्ते के पास लाने के बजाय उन्हें इससे दूर कर रहे हैं। इसी चिंताजनक मौजूदा हालात को देखकर एक शायर ने कहा है—
“किसे ख़बर थी कि लेकर चिराग़-ए-मुस्तफ़वी, जहाँ में आग लगाती फिरेगी बू लहबी।”