सृष्टि में एकत्व
सृष्टि का अध्ययन बताता है कि पूरी सृष्टि एक केन्द्र के चारों तरफ़ घूम रही है। एटम का एक न्यूक्लियस है और एटम का पूरा ढांचा उस न्यूक्लियस के चारों तरफ़ घूमता है। सौर-मंडल का केन्द्र सूरज है और उसके तमाम गृह-नक्षत्र लगातार उसके चारों तरफ़ घूम रहे हैं। इसी तरह आकाश-गंगा का एक केन्द्र है और आकाश-गंगा के अरबों सितारे इस केन्द्र के चारों तरफ़ घूमते है। यहां तक कि पूरे ब्रह्मांड का एक केन्द्र है और पूरी फैली हुई सृष्टि इस आख़िरी केन्द्र के चारों तरफ़ चक्कर लगा रही है।
वैज्ञानिकों का अन्दाज़ा है कि सृष्टि का यह केन्द्र एक दिन अपने चारों तरफ़ की चीज़ों को खींचना शुरू करेगा और फिर अकल्पनीय हद तक फैली हुई यह असीम सृष्टि अपने केन्द्र की तरफ़ सिमटना शुरू होगी और आख़िरकार वह वक़्त आएगा कि सृष्टि के सारे पिंड सिमट-सिमट कर एक केन्द्रीय गोले का रूप धारण कर लेंगे, जैसे बिखरी हुई कीलों के बीच चुम्बक लाया जाए और सब कीलें सिमट-सिमट कर उससे जुड़ जाएं।
इस तरह सृष्टि (क़ायनात) जैसे एकेश्वरवाद का व्यावहारिक प्रदर्शन बन गई है। वह अपने व्यवहार और अपनी गति से बता रही है कि इन्सान की ज़िन्दगी को कैसा होना चाहिए। इन्सान की ज़िन्दगी को ऐसा होना चाहिए कि उसकी तमाम सरगर्मियों का सिर्फ़ एक केन्द्र हो और वह एक ख़ुदा हो। आदमी के जज़्बात, उसकी सोच, उसकी सरगर्मियां, उसका सब कुछ ख़ुदा के आगे घूमने लगे।
आदमी अगर अपनी ज़िन्दगी का केन्द्र अपने आपको बनाए तो सृष्टि की गति के हिसाब से वह प्रतिकूल है। इसी तरह अगर वह अपने व्यक्तित्व के बाहर किसी को अपने ध्यान का केन्द्र बनाए तो मौजूदा ढांचा एक हस्ती के सिवा किसी दूसरे की ‘केन्द्रीयता’ को मानने से इन्कार करता है।
सृष्टि पुकार-पुकार कर कह रही है - ‘एक’ को अपने ध्यान का केन्द्र बनाओ, न कि एक के सिवा ‘कई’ को।