ख़ुदा की हिफ़ाज़त में
इस्लाम दीने-महफूज़ है, यानी एक सुरक्षित धर्म है। मुसलमान इस दीने-महफ़ूज़ के मानने वाले हैं। मुसलमानों की इस हैसियत ने उनको भी एक महफूज़ और सुरक्षित गिरोह बना दिया है। जिस तरह इस्लाम को मिटाना मुमकिन नहीं उसी तरह मुसलमानों को मिटाना भी मुमकिन नहीं। इस्लाम और मुसलमानों के लिए ख़ुदा की यह हिफ़ाज़त जारी रहेगी, यहां तक कि क़ियामत आ जाए।
मुस्लिम उम्मत के साथ ख़ुदा के इस मामले का इज़हार बार-बार हुआ है। पहले दौर में मक्का में मुसलमानों के ठहरने को नामुमकिन बना दिया गया। ठीक उसी वक़्त मदीना के रूप में अल्लाह ने मुसलमानों के लिए एक ताक़तवर मर्कज़ फ़राहम कर दिया। रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की वफ़ात के बाद अरब क़बीलों में आम बग़ावत पैदा हो गई, जिसको तारीख़ में ‘फ़ित्ना-ए-इर्तिदाद’ यानी धर्म से फिर जाने का फ़ित्ना कहा जाता है। मगर अल्लाह ने अपनी ख़ास मदद से फ़ित्ने और बुराई के पैदा होते ही उसको ख़त्म कर दिया। ख़िलाफ़ते राशिदा के ज़माने में रोमी साम्राज्य और ईरानी साम्राज्य ने मुसलमानों को ख़त्म करना चाहा मगर अल्लाह की मदद से मुसलमान ख़ुद उन साम्राज्य को ख़त्म करने में कामयाब हो गए। इसके बाद यूरोप की मसीही सल्तनतों ने एकजुट होकर मुस्लिम दुनिया पर हमला कर दिया ताकि शाम (सीरिया) और फ़िलिस्तीन पर क़ब्ज़ा कर लें। मगर दो सौ साल की जंग के बावजूद उनको मुकम्मल शिकस्त हुई। आख़िरी अब्बासी ख़लीफ़ा के ज़माने में तातारी क़बीलों ने मुस्लिम सल्तनत को ताराज और बरबाद कर दिया। समरक़न्द से लेकर बग़दाद तक तमाम मस्जिदों को ढा दिया। मगर सिर्फ़ पचास साल के अन्दर तारीख़ बदल गई। तातारियों ने इस्लाम क़बूल कर लिया, उन्होंने ढाई हुई मस्जिदों को दोबारा तामीर किया और उन मस्जिदों में सज्दा करके ख़ुदा के सामने अपने इज्ज़ और क्षुद्रता का इक़रार किया।
उन्नीसवीं सदी के मध्य में मुग़ल साम्राज्य ख़त्म हुआ। बीसवीं सदी के आग़ाज़ में उस्मानी ख़िलाफ़त का ख़ात्मा हो गया। बज़ाहिर ऐसा मालूम हुआ कि अब मुसलमानों के लिए दुनिया में कोई मुस्तक़िबल और कोई भविष्य नहीं। मगर दूसरे विश्व-युद्ध के बाद लोगों ने देखा कि दुनिया के नक़्शे पर पचास से ज़्यादा आज़ाद मुस्लिम मुल्क वजूद में आ गए हैं। और तमाम इस्लामी सरगर्मियां नए सिरे से, नई ताक़त के साथ जारी हो गई हैं।
मुसलमानों को उम्मते-मरहूमा और वंचित समाज कहा जाता है। यह बात सही नहीं, बल्कि मुसलमान उम्मते-महफ़ूज़ा (सुरक्षित उम्मत) हैं। यानी उनके अन्दर बिगाड़ के बावजूद उन पर मिटा देने वाला अज़ाब नहीं आएगा, और कोई क़ौम उन पर इतन क़ाबू न पा सकेगी कि वह उनको बिल्कुल मिटा दे। इसका सबब कोई फ़ज़ीलत (मुसलमानों की श्रेष्ठता) नहीं है। यह दुन्यवी हिफ़ाज़त मुसलमानों को पूरी तरह नबूवत की श्रृंखला के ख़त्म होने के कारण से हासिल हुई है।
मौजूदा ज़माने में ख़ुदा की यह सुन्नत बहुत बड़े पैमाने पर ज़ाहिर हुई है। मौजूदा ज़माने में जो मुस्लिम रहनुमा उठे, उन्होंने अपनी ग़लत रहनुमाई से मुसलमानों का यह हाल कर दिया कि वे अपने अन्दर किसी भी क़िस्म की बुनियाद (base) फ़राहम न कर सके। बेशुमार तहरीकें सिर्फ़ उनकी ताक़त और इनर्जी को बरबाद करती रहीं। कोई भी तहरीक उन्हें वक़्त की चीज़ों में से कोई चीज़ न दे सकी। मगर अल्लाह ने अपने श्रेष्ठ इन्तिज़ाम के तहत उन्हें हर चीज़ फ़राहम कर दी।
लीडरों की ग़लत रहनुमाई के नतीजे में मुसलमान आधुनिक अर्थशास्त्र और आधुनिक अर्थतन्त्र में अपनी जगह न बना सके। ऐसा लगा कि वे आज के ज़माने के शूद्र और दलित बन कर रह जाएंगे। मगर ऐन वक़्त पर तेल का ख़जाना ज़ाहिर हुआ। मुस्लिम मुल्कों की ज़मीन के नीचे अल्लाह तआला ने दुनिया के तेल के ज़ख़ीरों का 50 फ़ीसद से भी ज़्यादा हिस्सा रख दिया। इस क़ुदरती ख़ज़ाने ने मुसलमानों के आर्थिक पिछड़ेपन की भरपाई कर दी।
क़यामत में ऐसे हक़ायक़ और तथ्य छिपे हुए थे जो क़ुरआन के ख़ुदा की किताब होने की पुष्टि करने वाले थे। मगर मुस्लिम लीडर अपने झूठे कामों की वजह से सृष्टि और कायनात की सच्चाई की खोज में न लग सके। अल्लाह तआला ने यह काम पश्चिमी क़ौमों से लिया। उन्होंने प्रकृति और फ़ितरत की सच्चाइयों को खोज निकाल कर इस बात की व्यावहारिक व्याख्या जुटा दी कि हम उनको ज़मीन और आसमान और प्रकृति में अपनी निशानियां दिखाएंगे ताकि उन पर यह खुल जाए कि यह हक़ (सत्य) है (क़ुरआन, 41:53)।
अल्लाह तआला को इस दीन की आवाज़ पूरी ज़मीन के हर छोटे और बड़े घर में पहुंचानी थी (मुसनद अहमद, हदीस संख्या 23814), इसलिए अल्लाह ने फ़ितरत और प्रकृति में यातायात और संचार के साधन छिपा रखे थे। मगर मुस्लिम रहनुमां यहां भी इन चीज़ों को खोजने में नाकाम रहे। अल्लाह तआला ने दूसरी क़ौमों को इस खोज में लगा दिया। यहां तक कि वे तमाम प्रचार-प्रसार के साधन वजूद में आ गए, जिनको प्रिंट मीडिया और इलैक्ट्रानिक मीडिया कहा जाता है। इन साधनों के आ जाने से अब यह बहुत आसान हो गया है कि उनको इस्तेमाल करके इस्लाम की आवाज़ पूरी धरती पर फैला दी जाए।
इस तरह बहुत से पहलू हैं जो बताते हैं कि अल्लाह तआला ने किस तरह अपनी मदद से मुसलमानों की कोताहियों की भरपाई की है। मुसलमानों को चाहिए कि वे ख़ुदा के इस मामले को जानें और उनको इस्तेमाल करते हुए उस ख़िदमते-इस्लाम में लग जाएं जिसके लिए उनके रब ने उनके साथ हिफ़ाज़त और मदद का यह ख़ास मामला फ़रमाया है।