अनेकता में एकता
क़ायनात का अध्ययन करने से मालूम होता है कि इसमें अनेकता में एकता का नियम लागू है। यानी चीज़ें देखने में तो भिन्न और अनेक हैं। पर जब उनका विश्लेषण किया जाता है तो मालूम होता है कि तमाम चीज़ें अपनी अंतिम सच्चाई की दृष्टि से परमाणु (एटम) का संकलन हैं। हर चीज़ अंततः एटम है, चाहे वह ऊपर से कुछ भी दिखाई देती हो।
यही क़ायनाती पैटर्न इन्सानों के अन्दर भी रखा गया है। इन्सान ऊपर से देखने में एक-दूसरे से अलग नज़र आते हैं। उनमें रंग और नस्ल के लिहाज़ से बहुत सी भिन्नताएं पाई जाती हैं, पर अगर उनका ऐतिहासिक विश्लेषण किया जाए तो पता चलता है कि तमाम नस्लें आख़िरकार एक मां-बाप पर जाकर ख़त्म होती हैं। यानी सब एक-दूसरे के भाई हैं, न कि एक-दूसरे के पराए।
यही बात क़ुरआन में इन शब्दों में कही गई है: ऐ लोगो, अपने रब से डरो, जिसने तुमको एक जान से पैदा किया, और उससे उसका जोड़ा निकाला। और फिर उन दोनों से बहुत से मर्द और औरत ज़मीन में फैला दिए। (4:1)
यही बात हदीस में इस तरह आई है: सुन लो कि तुम सब आदम की औलाद हो और आदम मिट्टी से थे। (मुसनद अहमद, हदीस संख्या 8736)
इन्सानी एकता की यह परिकल्पना हर इन्सान के दिल में दूसरे इन्सान के लिए मुहब्बत और सदभाव पैदा करती है। वह पूरी इन्सानी नस्ल को एक कुटुम्ब, एक ख़ानदान और एक बिरादरी बना देती है। हदीस में कहा गया है:
“तमाम मखलूक (जीवधारी) अल्लाह की कुटुम्ब है। तमाम लोगों में अल्लाह के निकट सबसे ज़्यादा प्रिय वह है, जो अपने कुटुम्ब के साथ अच्छा सलूक करे।” (मुसनद अल-बज़्ज़ार, हदीस संख्या 6947)
क़ायनाती मॉडल अनेकता में एकता की खूबी रखता है। इन्सान को भी इसी क़ायनाती माडल पर अपनी जिंदगी का नक़्शा बनाना चाहिए। उसको अनेक में एक नमूना बन जाना चाहिए। क़ायनात में जब अनेकता में एकता (unity in diversity) का नियम चल रहा है तो इन्सान के लिए यह दुरुस्त नहीं कि वह अनेक को एक करने (unification of diversity) के तरीके पर जिंदगी की व्यवस्था बनाने की कोशिश करे।