कायनात मशीन नहीं
मौजूदा ज़माने में मशीनी इन्सान बनाए गए हैं, जिनको आम तौर पर रोबोट (Robot) कहा जाता है। रोबोट देखने में आदमी की शक्ल का होता है। वह चलता है। वह बोलता है। वह काम करता है। मगर हक़ीक़त में वह एक मशीन होता है न कि कोई शऊर या चैतन्य। वह उसी तरह मैकानिकी अन्दाज़ में अमल करता है, जैसे इन्सान की बनाई हुई दूसरी तमाम मशीनें।
लन्दन के एक दफ़्तर में एक रोबोट रखा गया था, ताकि वह चपरासी (office boy) के तौर पर काम कर सके। यह रोबोट जब तैयार होकर दफ़्तर में आया तो दफ़्तर की सेक्रेटरी मिस जैनी सेफ़ ने उसको अज़माइशी हरकत (trial run ) देनी चाही। वह रोबोट की बैटरी जांच रही थीं कि रोबोट हरकत में आ गया। वह सेक्रेटरी के पीछे चलने लगा। अब यह हालत हुई कि सेक्रेटरी आगे-आगे भाग रही हैं और मशीन उनको पीछे से दौड़ा रही है। रोबोट इस तरह चल रहा था जैसे उसने कंट्रोल क़बूल करने से इन्कार कर दिया है। इस भाग दौड़ में एक नया टाइपराइटर टकरा कर ज़मीन पर गिर पड़ा और टूट गया। आख़िरकार बड़ी मुश्किल से रोबोट को क़ाबू में लाया गया (हिन्दुस्तान टाइम्स, 30 जून 1981)।
मौजूदा ज़माने में जो लोग ख़ुदा को नहीं मानते उनका कहना है कि कायनात इसके सिवा कुछ नहीं कि वह बहुत बड़ी मशीन है। वह बस उसी तरह चल रही है जिस तरह कोई ‘रोबोट’ मैकानिकी तौर पर चलता है। मगर कायनात या ब्रह्माण्ड का खरबों साल से बेहद संगठित तौर पर एक सी हालत में चलना इस मान्यता का खंडन कर रहा है। अगर कायनात महज़ एक मैकानिकी मशीन होती, जैसे रोबोट, तो यक़ीनन उसमें बार-बार उसी क़िस्म के टकराव होते जैसा कि लन्दन के आफ़िस में ऊपर वाली घटना में हुआ।
क़ुरआन में है: और सूरज अपने एक तयशुदा मदार पर चक्कर लगाता है। यह ज़बरदस्त बुद्धीमान हस्ती का तय किया हुआ अन्दाज़ा है। और चांद के लिए हमने मंज़िलें ठहरा दी हैं। यहां तक कि वह फिर खजूर की सूखी शाख़ की तरह रह जाता है। न सूरज के बस में है कि वह चांद को जा पकड़े और न रात दिन से आगे बढ़ सकती है। हरेक अपने ख़ास दायरे में चक्कर लगाता है (36:38-40)। क़ुरआन का यह बयान मौजूदा ज़माने में एक साबितशुदा इन्सानी गवाही बन चुका है और यही सच्चाई इस बात के सबूत के लिए काफ़ी है कि यहां एक बाशऊर हस्ती है जो कायनात को कंट्रोल कर रही है। उसके बग़ैर कायनात के अन्दर यह व्यवस्था और यह बाक़ायदगी इतने सिद्ध व सफल रूप में मुमकिन न होती।