ईमान की हक़ीक़त यह है कि
आदमी ग़ैबी हक़ीक़तों को देखने लगे
हज़रत मालिक बिन अनस कहते हैं कि हज़रत मुआज़ बिन जबल रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के पास आए । आपने पूछा कि ऐ मुआज़, तुमने कैसे सुबह की? उन्होंने कहा कि मैंने अल्लाह पर ईमान के साथ सुबह की । आपने फ़रमाया कि हर बात का एक मिस्दाक़ होता है और हर बात की एक हक़ीक़त होती है । फिर जो कुछ तुम कहते हो उसका मिस्दाक़ (चरितार्थ) क्या है । उन्होंने कहा कि ऐ अल्लाह के रसूल, मैंने कभी कोई ऐसी सुबह नहीं की, जिसमें मुझे यह ख़याल न लगा हुआ हो कि अब मैं शाम न कर सकूंगा । और मैंने कोई क़दम ऐसा नहीं उठाया जिसमें मुझे यह ख़याल न हो कि मैं दूसरा क़दम न उठा सकूंगा । और गोया कि मैं घुटनों के बल गिरी हुई उन तमाम उम्मतों को देख रहा हूं, जिनको अपने आमालनामे (कर्मपत्र) की तरफ़ बुलाया जा रहा है और उनके साथ उनका पैग़म्बर है । और उनके साथ वे बुत भी हैं जिनको वे ख़ुदा के सिवा पूजती थीं । और जैसे मैं दोज़ख़ वालों की सज़ा को और जन्नत वालों के सवाब को देख रहा हूं । यह सुन कर रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमायाः तुम मग़फ़िरत को पहुंच गए । अब इसी पर जमे रहो । (हिलयत-उल-औलिया , 1/242)
अल्लाह की याद सबसे बड़ी इबादत
अब्दुल्लाह बिन अब्बास ने कहा, “रात में थोड़ी देर इल्म की चर्चा करना मुझे इससे ज़्यादा पसंद है कि मैं सारी रात इबादत करूं।” (मुसन्नफ़ अब्दुर रज़्ज़ाक़, 21543)