क़ुरआन की आयत (4:82) में जिस टकराव (conflict) या असमानता का वर्णन किया गया है, उसके दो ख़ास पहलू हैं— एक आंतरिक और दूसरा बाहरी।
आंतरिक असमानता (internal contradiction) यह है कि किताब का एक बयान किताब के दूसरे बयान से टकरा रहा हो। बाहरी असमानता (external contradiction) यह है कि किताब का बयान बाहरी दुनिया की हक़ीक़तों से टकरा जाए। क़ुरआन का दावा है कि वह इन दोनों प्रकार के टकरावों से ख़ाली है, जबकि कोई भी मानवीय रचना इनसे ख़ाली नहीं हो सकती। यही घटना इस बात का सबूत है कि क़ुरआन ग़ैर-इंसानी ज़हन से निकला हुआ कलाम है। अगर वह एक इंसानी कलाम होता तो ज़रूर उसके अंदर भी वही कमी पाई जाती, जो सारे इंसानी कलाम में यक़ीनी तौर पर पाई जाती है।
कलाम में आंतरिक टकराव हक़ीक़त में वक्ता के व्यक्तित्व में अंदरूनी कमी का नतीजा होता है। आंतरिक टकराव से बचने के लिए दो चीज़ें अनिवार्य हैं— एक पूर्ण ज्ञान और दूसरी पूर्ण वस्तुनिष्ठता (objectivity)। कोई भी इंसान इन दोनों कमियों से ख़ाली नहीं होता, इसलिए इंसान का कलाम आंतरिक टकराव से ख़ाली भी नहीं होता। यह केवल ईश्वर है, जो सारी कमियों से पवित्र है। इसलिए केवल ईश्वर का कलाम ही वह कलाम है, जो आंतरिक टकराव से पूरी तरह ख़ाली है।
इंसान अपनी सीमितताओं (limitations) के कारण बहुत-सी बातों को अपनी बुद्धि की पकड़ में नहीं ला सकता, इसलिए अनुमानित रूप से कभी वह एक बात कहता है और कभी दूसरी बात। हर इंसान का यह हाल है कि वह कच्ची आयु (immature age) से पक्की आयु (mature age) की ओर सफ़र करता है। इसका नतीजा यह होता है कि वह कच्ची आयु में जो बात कहता है, पक्की आयु में पहुँचकर वह ख़ुद उसके ख़िलाफ़ बोलने लगता है। हर आदमी का ज्ञान और अनुभव बढ़ता रहता है। इस बुनियाद पर उसकी शुरुआती बात कुछ और होती है और आख़िरी बात कुछ और। इंसान की आयु बहुत कम है। उसकी जानकारी अभी पूरी नहीं होती कि उसकी मौत हो जाती है। वह अपनी अधूरी जानकारी की बुनियाद पर ऐसी बात कहता है, जो उसके बाद ठीक साबित नहीं होती।
इसी तरह आदमी की किसी से दोस्ती होती है और किसी से दुश्मनी। वह किसी से मुहब्बत करता है और किसी से नफ़रत। वह किसी के बारे में साधारण ज़हन के तहत सोचता है और किसी के बारे में प्रतिक्रिया (reaction) की मानसिकता का शिकार हो जाता है। इंसान पर कभी ग़म का पल गुज़रता है और कभी ख़ुशी का। वह कभी एक तरंग में होता है और कभी दूसरी तरंग में। इस आधार पर इंसान की बात में समानता नहीं होती। वह कभी एक तरह की बात कहता है और कभी दूसरी तरह की बात बोलने लगता है। ईश्वर इन सारी कमियों से पाक है, इसलिए उसकी बात हमेशा समान होती है और हर तरह के विरोध से ख़ाली भी।