क़ुरआन में यह वर्णन है कि ईश्वर ने क़लम के द्वारा इंसान को शिक्षा दी (96:5)। इससे इस्लामी दावत के लिए साहित्य की अहमियत मालूम होती है, मगर इस्लामी साहित्य का यह मतलब नहीं कि इस्लाम के नाम पर कुछ किताबें लिखी जाएँ और उन्हें किसी-न-किसी तरह अलग-अलग भाषाओं में छापकर बाँटा जाए। हक़ीक़त यह है कि इस्लामी साहित्य का मामला कोई साधारण मामला नहीं, बल्कि यह इंसानी सतह पर क़ुरआन का बदल उपलब्ध कराना है।
ईश्वर ने अपनी वाणी अरबी भाषा में उतारी है, मगर इसका प्रचार दूसरी भाषाओं वालों तक भी करना है और जैसा कि साबित है कि निमंत्रित की उसकी अपनी भाषा में करना है (14:4)। इस दृष्टि से अगर ‘अल्लमा बिल क़लम’ (ईश्वर ने क़लम के द्वारा इंसान को शिक्षा दी) को वक़्ती न समझा जाए, बल्कि इसे स्थायी पृष्ठभूमि (everlasting perspective) में रखकर देखा जाए तो निश्चित रूप से इंसान भी इसमें शामिल हो जाता है, क्योंकि दूसरी भाषाओं में क़लम के द्वारा शिक्षा का कर्तव्य इंसान को ही अदा करना है। मानो यह कहना सही होगा कि ईश्वर अरबी भाषा में क़लम के द्वारा शिक्षक बना था, अब हमें दूसरी भाषाओं में क़लम के द्वारा शिक्षक बनना है। मशहूर अरब शायर लबीद ने क़ुरआन को सुनकर शायरी छोड़ दी। किसी ने कहा कि अब तुम शायरी क्यों नहीं करते? उन्होंने कहा, “क्या क़ुरआन के बाद भी?” इसका मतलब यह है कि क़ुरआन ने अपने ज़माने के लोगों को मानसिक रूप से जीत लिया था। इसी तरह आज दोबारा ऐसे साहित्य की ज़रूरत है, जो लोगों को मानसिक रूप से जीत ले।
प्रत्यक्ष रूप से यह बात असंभव दिखाई देती है, लेकिन इस असंभव को ख़ुद ईश्वर ने हमारे लिए संभव बना दिया है। ईश्वर ने सत्य के निमंत्रणकर्ताओं की मदद के लिए मानव इतिहास में एक नई क्रांति की। यहाँ मेरा मतलब वैज्ञानिक क्रांति से है। वैज्ञानिक क्रांति के द्वारा नई तार्किक संभावनाएँ इंसान की पहुँच में आ गईं, यहाँ तक कि नि:संदेह यह कहा जा सकता है कि आज हमारे लिए यह संभव हो गया है कि संबोधित के सामने धर्म के पक्ष में उन चमत्कारिक तर्कों को प्रस्तुत कर सकें, जो पहले केवल ईश्वर के पैग़ंबरों की पहुँच में होते थे।
हक़ीक़त यह है कि कायनात एक शानदार ईश्वरीय चमत्कार है। वह अपने पूरे अस्तित्व के साथ अपने रचयिता की हस्ती और गुणों के पक्ष में चमत्कारिक प्रमाण है, लेकिन पुराने ज़माने में यह ईश्वरीय चमत्कार अभी तक अपर्याप्त स्थिति में पड़ा हुआ था, इसलिए ईश्वर ने पुराने ज़माने में पैग़ंबरों को विशिष्ट रूप से असाधारण गुणों के चमत्कार दिए, मगर पैग़ंबर-ए-इस्लाम के संबोधितों की लगातार माँग के बावजूद उन्हें इस तरह का कोई चमत्कार नहीं दिखाया गया, बल्कि क़ुरआन में कायनात का हवाला दिया गया। कहा गया है कि कायनात में ईश्वर की निशानियाँ मौजूद हैं, उनको देखो। वही तुम्हारे विश्वास के लिए काफ़ी हैं। चूँकि क़ुरआन वैज्ञानिक दौर के शुरू में आया, इसलिए क़ुरआन में कायनात की निशानियों का हवाला देना काफ़ी समझा गया। आने वाले ज़माने में क़ुरआन का संबोधित वह इंसान था, जो विज्ञान के दौर में जिएगा और विज्ञान के दौर के इंसान को ईश्वर और उसकी बातों पर विश्वास करने के लिए किसी चमत्कार की ज़रूरत नहीं।
चमत्कार से क्या वांछित है? चमत्कार का उद्देश्य केवल कोई आश्चर्यजनक घटना नहीं, बल्कि सत्य को, निमंत्रण के संबोधित के लिए, आख़िरी हद तक साबित करना है। निमंत्रण के हक़ में ऐसे तर्कों को जमा करना है, जिसके बाद संबोधित के लिए इनकार की गुंजाइश न बचे। पुराने ज़माने में इसी उद्देश्य के लिए असाधारण गुण का चमत्कार दिखाया जाता था। मौजूदा ज़माने में यही काम प्रकृति के भेदों को खोलकर विज्ञान ने अंजाम दे दिया है। स्पष्ट है कि क़ुरआन में पैग़ंबराना चमत्कारों और कायनाती निशानियों के लिए एक ही शब्द इस्तेमाल हुआ है और वह शब्द आयत (निशानी) है।
ईश्वर के धर्म का निमंत्रण इस हद तक दिया जाए कि कोई तर्क शेष न रहे (4:165)। इसी तर्क-पूर्ति के लिए पुराने ज़माने में पैग़ंबरों के द्वारा चमत्कार दिखाए गए। अब सवाल यह है कि आज की क़ौमों के लिए भी यह वांछित है कि ईश्वरीय धर्म का निमंत्रण उनके सामने इस हद तक दिया जाए की कोई तर्क शेष ना रहे । फिर मौजूदा ज़माने में इसका ज़रिया क्या है, जबकि पैग़ंबरों का आना अब समाप्त हो चुका है।
आधुनिक वैज्ञानिक क्रांति इसी सवाल का जवाब है। आधुनिक वैज्ञानिक क्रांति के द्वारा यह संभव हो गया है कि सत्य धर्म की शिक्षाओं को ठीक उस कसौटी पर साबित किया जा सके, जो इंसान की अपनी मानी हुई कसौटी है। इस सिलसिले में पहली महत्वपूर्ण बात वह है, जो तर्क-प्रणाली (methodology) से संबंध रखती है। आधुनिक विज्ञान ने विभिन्न क्षेत्रों में अपनी जाँच-पड़ताल के परिणामस्वरूप इस बात को पूरी तरह स्वीकार किया है कि निष्कर्षात्मक तर्क (inferential argument) अपनी दशा की दृष्टि से उतना ही मान्य (valid) है, जितना कि सीधा तर्क। यही क़ुरआन की तर्क-शैली है। इसका मतलब यह है कि मौजूदा ज़माने में इंसानी ज्ञान ने क़ुरआन की तर्क-शैली को ठीक वही दर्जा दे दिया है, जो धार्मिक विद्याओं के बाहर ख़ुद इंसान ने जिस तर्क-शैली को स्वीकार किया है।
आधुनिक विज्ञान का यह नतीजा हुआ कि जो चीज़ पहले केवल बाहरी सूचना की हैसियत रखती थी, वह अब ख़ुद इंसानी खोज बन चुकी है। आधुनिक विज्ञान ने मालूम किया है कि इंसान अपनी सीमितताओं (limitations) के कारण पूरी हक़ीक़त तक नहीं पहुँच सकता। इससे साफ़ तौर पर साबित होता है कि इंसान के मार्गदर्शन के लिए ईश-संदेश की ज़रूरत है। आधुनिक विज्ञान ने मालूम किया है कि कायनात में स्वच्छंद व्यवस्था (arbitrary system) है। इससे स्पष्ट रूप से ईश्वर का अस्तित्व साबित होता है। आधुनिक विज्ञान ने मालूम किया है कि मौजूदा दुनिया के साथ एक और अदृश्य समानांतर दुनिया मौजूद है, जिसका वैज्ञानिक नाम एंटी वर्ल्ड (anti world) है। इससे स्पष्ट रूप से परलोक की दुनिया का अस्तित्व साबित होता है आदि।
इसी प्रकार चुंबकीय क्षेत्र (magnetic field) और गति (motion) के मिलने से बिजली का पैदा होना वैसा ही एक आश्चर्यजनक ईश्वरीय चमत्कार है, जैसा हाथ को बग़ल में रखकर निकालने से हाथ का असाधारण रूप से चमक उठना और बड़े-बड़े जहाज़ों का अथाह समंदरों और लाँघे न जा सकने वाले माहौल में इंसान को लेकर दौड़ना, वैसा ही डरावना ईश्वरीय चमत्कार है, जैसा दरिया का फटकर इंसानों को पार होने का रास्ता देना। पदार्थ से गतिमान मशीनों का अस्तित्व में आना वैसा ही अजीब ईश्वरीय चमत्कार है, जैसा लाठी का साँप बनकर चलने लगना।
सच्चाई यह है कि पुराने ज़माने में पैग़ंबरों को जो चमत्कार दिए गए, वह सब तर्क-पूर्ति की दृष्टि से ईश्वर की पैदा की हुई कायनात में बड़े पैमाने पर मौजूद हैं, मगर पुराने ज़माने में चूँकि वह इंसान की जानकारी में नहीं आए थे, इसलिए ईश्वर ने लोगों को असाधारण चमत्कार दिखाए। आज वैज्ञानिक खोजों ने प्रकृति की यह निशानियाँ खोल दी हैं, इसलिए आज के इंसान के विश्वास के लिए वही काफ़ी हैं।
हक़ीक़त यह है कि वैज्ञानिक क्रांति ईश्वर के चमत्कार का प्रदर्शन है। इसके द्वारा ईश्वर की सारी बातें चमत्कारिक स्तर पर साबित हो रही हैं। अगर इनसे गहरी जानकारी हासिल की जाए और इनको सत्य के समर्थन में इस्तेमाल किया जाए तो यह निमंत्रण के साथ चमत्कार को जोड़ना होगा। इसमें कोई शक नहीं कि अगर आज हम वास्तविक अर्थों में वैज्ञानिक तर्कों के साथ धर्म का निमंत्रण दे सकें तो ज़मीन पर दोबारा यह घटना अस्तित्व में आएगी कि वक़्त का लबीद कह दे— “क्या हक़ीक़त के इस तरह साबित हो जाने के बाद भी?”
विज्ञान के तर्क मौजूदा दौर में चमत्कारिक तर्क के बदल के समान हैं। आधुनिक विज्ञान ने सभी धार्मिक शिक्षाओं को ज्ञानात्मक रूप से प्रमाणित या कम-से-कम समझ में आने योग्य (understandable) बना दिया है, लेकिन इस्लाम के निमंत्रणकर्ताओं ने अभी तक इसे सही मायनों में इस्तेमाल नहीं किया है। लेखक ने इस विषय पर दस वर्षीय अध्ययन के बाद 1964 में एक किताब उर्दू भाषा में ‘मज़हब और जदीद चैलेंज’ लिखी थी, जो अरबी भाषा में ‘अल-इस्लामु यतहद्दा’ के नाम से प्रकाशित हो चुकी है, लेकिन बीते वर्षों में ज्ञान का सागर बहुत आगे जा चुका है, अत: लेखक ने इस विषय पर अंग्रेज़ी भाषा में एक पुस्तक तैयार की है, जिसका नाम ‘गॉड अराइसिस’ (God Arises)है।