क़ुरआन में इनकार करने वालों की उस माँग का वर्णन है, कि वे पैग़ंबर से कहते हैं कि अगर तुम अपने इस वादे में सच्चे हो कि जो संदेश तुम लाए हो, वह ईश्वर की तरफ़ से है तो कोई चमत्कार दिखाओ। जवाब दिया कि ईमान का दारोमदार चमत्कारिक घटनाओं पर नहीं है, बल्कि इस पर है कि आदमी की आँख खुली हुई हो और वह निशानियों से सबक़ लेना जानता हो (क़ुरआन,6:34-36)। जिसमें यह योग्यता हो, उसे नज़र आएगा कि यहाँ वह ‘चमत्कार’ पहले से ही बहुत बड़े पैमाने पर मौजूद है, जिसकी वह माँग कर रहा है। आख़िर इससे बड़ा चमत्कार और क्या हो सकता है कि सारी कायनात अपने सभी अंगों सहित उस संदेश की सच्चाई की पुष्टि कर रही है, जिसकी तरफ़ ईश्वर का पैग़ंबर बुला रहा है और अगर आदमी ने अपने आपको अंधा बना रखा हो, वह घटनाओं से सबक़ लेने की कोशिश न करता हो तो बड़े-से-बड़ा चमत्कार भी कारगर नहीं हो सकता।
इस सिलसिले में दूसरी रचनाओं जैसे चिड़ियों और जानवरों की मिसाल दी गई है, जो इस दुनिया में इंसान के सिवा पाई जाती हैं। दूसरी जगह ज़मीन और आसमान को भी इन मिसालों में शामिल किया गया है (क़ुरआन, 17:44)। कहा गया कि अगर तुम सोच-विचार करो तो तुम्हारे लिए सीख हासिल करने और नसीहत लेने का काफ़ी सामान इनके अंदर मौजूद है, क्योंकि यह सब तुम्हारी तरह ही रचनाएँ हैं। इनको भी अपनी ज़िंदगी में एक ढंग अपनाना है, जिस तरह तुम्हें अपनाने के लिए कहा जा रहा है।
लेकिन तुम्हारी तुलना में, दुनिया में मौजूद चीज़ों का बेहद बड़ा हिस्सा होने के बावुजूद, उनका मामला पूरी तरह से तुमसे अलग है। वह एक ही निर्धारित रास्ते पर करोड़ों वर्ष से चल रही हैं। इनमें से कोई अपने निर्धारित रास्ते की थोड़ी-सी भी अवहेलना नहीं करती। यह सिर्फ़ इंसान है, जो एक निर्धारित रास्ते को स्वीकार नहीं करता। हर आदमी चाहता है कि वह अपनी मनमानी राहों पर दौड़ता रहे।
पैग़ंबर की माँग तुमसे क्या है? यही तो है कि इस दुनिया का एक रचयिता और स्वामी है। तुम्हारे लिए सही तरीक़ा यह है कि तुम उद्दंडता (Arrogance) और अपनी मर्ज़ी को छोड़ दो और अपने रचयिता व स्वामी के अधीन हो जाओ। सोच-विचार करो तो इस निमंत्रण के सत्य होने की सारी ज़मीन और सारे आसमान और सभी जीव-जंतु गवाही दे रहे हैं (क़ुरआन, 24:41), क्योंकि जिस दुनिया में तुम हो, सब इसका बहुत बड़ा हिस्सा अपनी मर्ज़ी के बजाय पाबंदी का तरीक़ा अपनाए हुए है, तो तुम इसका बहुत ही छोटा-सा हिस्सा होकर इसके ख़िलाफ़ तरीक़ा अपनाने में सच के पैरोकार कैसे हो सकते हो।
शानदार कायनात का हर हिस्सा— चाहे वह छोटा हो या बड़ा— वही कर रहा है, जो उसे करना चाहिए। सब अपने एक ही नियुक्त मार्ग पर इतने सही तरीक़े से चले जा रहे हैं कि साफ़ मालूम होता है कि किसी सम्मानित और सर्वज्ञाता ने इनको बलपूर्वक इसका पाबंद कर रखा है (क़ुरआन, 36:38)। इतनी बड़ी कायनात में इंसान का अलग रास्ता अपनाना बता रहा है कि अवहेलना इंसान की ओर है, न कि बाक़ी कायनात की ओर (क़ुरआन, 3:83)।
सारी कायनात अपने असंख्य अंशों के साथ अत्यंत अनुकूलता से गतिविधि करती है। इनमें कभी आपस में टकराव नहीं होता। यह सिर्फ़ इंसान है, जो आपस में टकराव करता है। सारी कायनात अपनी अकल्पनीय गतिविधियों के साथ हमेशा बामक़सद अंजाम की ओर जाती है, लेकिन इंसान ऐसी कार्यवाहियाँ करता है, जो तबाही और बर्बादी पैदा करने वाली हों।
दो तरह के पानी अपनी-अपनी सीमा निर्धारित किए हुए हैं। उनमें से कोई भी एक-दूसरे की सीमा को नहीं तोड़ता, यहाँ तक कि साँडों का दल भी अपनी-अपनी सीमाओं को निर्धारित कर लेता है। हर साँड अपनी सीमा के अंदर खाता-पीता है, दूसरे साँड की सीमा में नहीं घुसता, लेकिन इंसान किसी हदबंदी को स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं होता। शहद की मक्खियाँ बहुत हद तक अनुशासन और कार्य-विभाजन के साथ अपनी रचनात्मक गतिविधियों को अंजाम देती हैं, लेकिन इंसान अनुशासन और व्यवस्था को तोड़ता है। चींटियाँ और चिड़ियाँ भोजन को हासिल करने में अपनी मेहनत पर भरोसा करती हैं। वे किसी से छीना-झपटी नहीं करतीं, लेकिन एक इंसान दूसरे इंसान का शोषण (exploitation) करता है।
कोई शेर या भेड़िया अपनी जाति के जानवर को नहीं फाड़ता, लेकिन एक इंसान दूसरे इंसान का ख़ून बहाता है। कोई जानवर, यहाँ तक कि साँप और बिच्छू भी बिना कारण किसी पर हमला नहीं करते। वह हमला करते हैं तो केवल अपने बचाव के लिए, लेकिन एक इंसान दूसरे इंसान के ऊपर एकतरफ़ा आक्रामक कार्यवाहियाँ करता है। सभी जानवर ज़रूरत के अनुसार खाते हैं, ज़रूरत के अनुसार शारीरिक संबंध बनाते हैं और ज़रूरत के अनुसार घर बनाते हैं, लेकिन इंसान हर चीज़ में फ़िज़ूलख़र्ची और ग़लत राह पर चलना और ग़ैर-ज़रूरी दिखावों का तरीक़ा अपनाता है।
सभी जानवर अपने काम के दायरे में अपने आपको व्यस्त रखते हैं, लेकिन इंसान अपने काम के दायरे को छोड़कर दूसरे के दायरे में हस्तक्षेप (intervention) करता है। एक चरवाहे की पचास बक़रियाँ जंगल में चरते हुए हज़ारों भेड़-बक़रियों से मिल जाएँ और इसके बाद उनका चरवाहा एक जगह खड़े होकर आवाज़ दे तो उसकी सारी बक़रियाँ निकल-निकलकर उसके पास आ जाती हैं, मगर इंसान का हाल यह है कि उसे ईश्वर और पैग़ंबर की तरफ़ बुलाया जाए तो वह सुनने और समझने के बाद भी उसकी पुकार की तरफ़ नहीं दौड़ता।
इंसान सारी कायनात का इससे भी कहीं ज़्यादा छोटा हिस्सा है, जितना पूरी ज़मीन की तुलना में सरसों का एक दाना। फिर इंसान के लिए इसके सिवा कोई रास्ता कैसे सही हो सकता है, जो बहुत बड़ी कायनात का रास्ता है। अगर इतने बड़े सबूत के बावजूद आदमी अपने लिए अलग रास्ते का चुनाव करता है तो मौजूदा दुनिया में वह अपने आपको अधिकारहीन (rightless) साबित कर रहा है। इसके बाद उसका अंजाम केवल यही हो सकता है कि उसे कायनात में बेजगह कर दिया जाए। कायनात की सारी चीज़ें उसके साथ सहयोग करने से इनकार कर दें। कायनात की सारी कृपाओं को उससे छीनकर उसे हमेशा के लिए वंचित कर दिया जाए।
आदमी जिस कायनात का हमसफ़र बनने के लिए तैयार नहीं, उसे क्या अधिकार है कि वह उस कायनात की चीज़ों से फ़ायदा उठाए। इसके बाद बिल्कुल स्वाभाविक रूप से यह अंजाम होना चाहिए कि कायनात को उसकी सारी कृपाओं के साथ केवल उन इंसानों को दे दिया जाए, जो उसका हमसफ़र बनें; जिन्होंने अपने रचयिता की अधीनता उसी तरह स्वीकार की, जिस तरह सारी कायनात कर रही थी। इसके सिवा वे इंसान, जिन्होंने बग़ावत और केवल अपनी राय का इस्तेमाल किया, उनको न इस दुनिया की रोशनी में हिस्सेदार बनने का अधिकार है और न ही इसके हवा और पानी में। वे इस दुनिया में न अपने लिए मकान बनाने का अधिकार रखते हैं और न खाने और आराम करने का।
न्याय की यही माँग है कि कायनात अपनी स्वर्गिक संभावनाओं (heavenly possibilities) के साथ केवल पहले दल के हिस्से में आए और दूसरे दल को यहाँ की सारी बेहतरीन चीज़ों से वंचित करके छोड़ दिया जाए।