पुराने ज़माने में जबकि मौजूदा वैज्ञानिक अवलोकन (observation) सामने नहीं आए थे, सारी दुनिया में अंधविश्वासी विचार फैले हुए थे। लोगों ने जाँच-पड़ताल के बिना ही अजीब-अजीब दृष्टिकोण बना लिये थे। यह दृष्टिकोण दोबारा समय की किताबों में ज़ाहिर होते थे। जो भी आदमी उस दौर में कोई किताब लिखता तो माहौल के प्रभाव से वह उन विचारों को भी दोहराने लगता था, जैसे—अरस्तू (322-384 ईo.) ने एक मौक़े पर पेट में परवरिश पाने वाले बच्चों का ज़िक्र किया है। इस सिलसिले में वह समय के पारंपरिक विचार के अनुसार यह कहता है कि पेट के बच्चों के स्वास्थ्य का संबंध हवाओं से है। अरस्तू के इस विचार का मज़ाक़ उड़ाते हुए बर्ट्रेंड रसेल ने लिखा है—
“He said that children will be healthier if conceived when the wind is in the north. One gathers that the two Mrs Aristotles both had to run out and look at the weathercock every evening before going to bed.” (p.17)
“अरस्तू ने कहा कि बच्चे तब ज़्यादा तंदरुस्त होंगे, अगर उत्तरी दिशा में हवा चलने के समय उनका गर्भ ठहर जाए। एक आदमी इससे अंदाज़ा लगा सकता है कि अरस्तू की दोनों पत्नियाँ हर शाम को बिस्तर पर जाने से पहले दौड़कर बाहर जाती होंगी और देखती होंगी कि हवा का रुख़ किस दिशा में है।”
क़ुरआन इसी पुराने दौर में उतरा। इसमें ज्ञान की विभिन्न शाख़ाओं से संबंधित बहुत बड़ी संख्या में हवाले मौजूद हैं, मगर क़ुरआन में कोई एक भी उदाहरण नहीं मिलता, जिसमें समय के पारंपरिक विचारों का प्रतिबिंब (reflection of traditional ideas) पाया जाता हो।