बेतुके उदाहरण

क़ुरआन के आलोचकों (critics) ने इस सिलसिले में कुछ उदाहरण देकर क़ुरआन के अंदर आंतरिक टकराव साबित करने की कोशिश की है, मगर यह सब-के-सब बेतुके उदाहरण हैं। गहराई से छानबीन तुरंत इसकी ग़लती स्‍पष्‍ट कर देती है। उदाहरण के लिए— वे कहते हैं कि क़ुरआन ने एक ओर यह उच्‍च नियम प्रस्‍तुत किया कि सभी इंसान बराबर हैं। क़ुरआन में कहा गया है—

“ऐ लोगो ! अपने रब से डरो, जिसने तुम्हें एक जानदार से पैदा किया और इस जानदार से उसका जोड़ा पैदा किया और उनसे बहुत से मर्द और औरतें फैला दीं।” (4:1)

वे यह भी कहते हैं कि हज के मौक़े पर आख़िरी बार संबोधित करते हुए हज़रत मुहम्मद ने मुसलमानों से कहा कि सभी लोग आदम से हैं और आदम मिट्टी से थे। इस नियम के अनुसार औरत का भी वही दर्जा होना चाहिए, जो मर्द का दर्जा है, मगर व्यावहारिक रूप से ऐसा नहीं है एक ओर क़ुरआन इंसानी बराबरी का झंडा उठाए हुए है और दूसरी ओर उसने औरत को समाज में कमतर दर्जा दे दिया। इसलिए गवाही के मामले में यह क़ानून निर्धारित किया कि दो औरतों की गवाही एक मर्द के बराबर मानी जाएगी।

यह सरासर ग़लतफ़हमी है। यह सही है कि इस्लाम में आम हालात में दो औरतों की गवाही एक मर्द के बराबर मानी गई है, मगर इसका आधार मर्द और औरतों में भेदभाव (gender discrimination) पर नहीं है, बल्कि इसका कारण बिल्कुल दूसरा है। यह हुक्म क़ुरआन की जिस आयत में है, वहीं इसका कारण भी बता दिया गया है। वह आयत यह है—

“जब तुम उधार का मामला करो तो उसे लिख लिया करो और अपने मर्दों में से दो मर्दों को गवाह बना लो और अगर दो मर्द गवाह न मिलें तो एक मर्द और दो औरतें, ऐसे गवाहों में से जिनको तुम पसंद करते हो, ताकि उन दोनों औरतों में से कोई अगर भूल जाए तो दूसरी औरत उसे याद दिला दे।” (2:282)

आयत के ये शब्‍द स्‍पष्‍ट रूप से बताते हैं कि इस हुक्म की बुनियाद औरत और मर्द में भेदभाव पर नहीं, बल्कि केवल याददाश्त पर है। यह आयत ज़िंदगी की उस हक़ीक़त की ओर इशारा कर रही है कि औरतों की याददाश्त आम तौर पर मर्दों से कम होती है। इसलिए क़र्ज़ के मामले में औरत को गवाही में लेना हो तो एक मर्द की जगह दो औरतें गवाह के तौर पर ली जाएँ, ताकि आगे जब कभी गवाही देनी हो तो दोनों मिलकर एक-दूसरे की याददाश्त की कमी की पूर्ति कर सकें।

यहाँ मैं याद दिलाना चाहता हूँ कि आधुनिक अनुसंधानों (modern research) ने इस बात की पुष्टि कर दी है कि मर्द के मुक़ाबले में औरत की याददाश्त कम होती है। रूस में इस विषय पर नियमित रूप से वैज्ञानिक रिसर्च किया गया है और नतीजे किताब के रूप में प्रकाशित किए गए हैं। इस रिसर्च का ख़ुलासा अख़बारों में आ चुका है। नई दिल्‍ली के अख़बार टाइम्‍स ऑफ़ इंडिया, 18 जनवरी, 1985 में यह ख़ुलासा निम्नलिखित शब्‍दों में प्रकाशित हुआ है—

“Memorising Ability: Men have a greater ability to memorise and process mathematical information than women but females are better with words, a Soviet scientist says, report UPI. Men dominate mathematical subjects due to the peculiarities of their memory, Dr. Vladimir konovalov told the Tass news agency.”

“औरतों के मुक़ाबले में मर्दों के अंदर इस बात की ज़्यादा योग्‍यता होती है कि वे हिसाबी जानकारियों को याद रखें और उसे क्रम दे सकें, लेकिन औरतें शब्‍दों में ज़्यादा बेहतर होती हैं। यह बात एक रूसी वैज्ञानिक ने कही। डॉ. व्लादिमीर कोनोवालोफ़ ने तास न्यूज़ एजेंसी को बताया कि मर्द हिसाबी विषयों पर छाए हुए हैं। इसका कारण उनके अंदर याददाश्त की विशेष योग्यता है।”

जब यह एक जैविक घटना है कि औरत की याददाश्त स्वाभाविक रूप से मर्द से कम होती है तो हक़ीक़त के मुताबिक़ सही बात यह है कि दो औरतों की गवाही एक मर्द के बराबर रखी जाए। क़ुरआन का यह क़ानून क़ुरआन में टकराव साबित नहीं करता, बल्कि यह साबित करता है कि क़ुरआन एक ऐसी हस्‍ती की ओर से आया हुआ कलाम है, जो सारी हक़ीक़तों के बारे में जानता है यही कारण है कि क़ुरआन के हुक्मों में सभी पहलुओं को ध्यान में रखा गया है।

Maulana Wahiduddin Khan
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