मतभेदों के बावजूद एकता

इंसानों के बीच हमेशा मतभेद बने रहते हैं। इसलिए एकता जब कभी पैदा होती है तो वह इस तरह पैदा नहीं होती कि लोगों में सिरे से कोई मतभेद न बचे। हक़ीक़त यह है कि मतभेद के बावजूद जुड़े रहने का नाम एकता है, न कि मतभेदों के बिना जुड़े होने का।

हज़रत मुहम्मद के साथियों के बीच ज़बरदस्त एकता पाई जाती थी। हक़ीक़त यह है कि इसी एकता के कारण वे इस योग्य हुए कि दुनिया में शानदार इस्‍लामी क्रांति ला सके, लेकिन यह एकता इस तरह पैदा नहीं हुई कि उनके बीच आपस में कोई मतभेद न था। हक़ीक़त यह है कि उनके बीच धार्मिक मामले और दुनियावी मामले, दोनों तरह की चीज़ों के बारे में बहुत ज़्यादा मतभेद पाए जाते थे, लेकिन इन सब निजी मतभेदों के बावजूद वे एक केंद्र-बिंदु पर जुड़े रहे। हज़रत मुहम्मद के साथियों ने मतभेदों के बावजूद अपने आपको इस्‍लामी उद्देश्‍य के इर्द-गिर्द इकट्ठा कर रखा था, न यह कि उनके बीच सिरे से कोई मतभेद ही न था।

‘मतभेद के बावजूद जुड़े रहना’ देखने में एक शब्‍द है, लेकिन यह सबसे बड़ी क़ुर्बानी है, जो मौजूदा दुनिया में कोई आदमी इसे अंजाम देता है। इस क़ुर्बानी के लिए उस उदारता की ज़रूरत है, जबकि आदमी दूसरे के फ़ायदे के लिए अपने नुक़सान को सहन कर ले। इसके लिए वह साहस चाहिए, जबकि निजी शिकायत के बावजूद वह दूसरे की श्रेष्ठता और कौशलता को स्वीकार कर सके। इसके लिए उस निस्वार्थता (selflessness) की ज़रूरत है, जबकि आदमी दूसरे की तुलना में अपने आपको छोटा होता हुआ देखे, फिर भी वह नकारात्‍मक मानसिकता (negative mentality) का शिकार न हो। इसके लिए उस उच्‍च योग्यता की ज़रूरत है, जबकि आदमी अपनी राय को अपने आप अहम समझते हुए दूसरे की राय की तुलना में उसे वापस ले ले। इसके लिए उस साहस की ज़रूरत है, जबकि आदमी दूसरे को अगली सीट पर बिठाकर ख़ुद पिछली सीट पर बैठने के लिए राज़ी हो जाए।

सामूहिक एकता आदमी की सबसे बड़ी क़ुर्बानी है। आदमी किसी चीज़ को उस वक़्त छोड़ता है, जबकि उसे उससे बड़ी कोई चीज़ मिल जाए। ईश्वरीय निमंत्रण का मिशन यही सबसे बड़ी चीज़ है। निमंत्रण व गवाही मानो इस दुनिया में ईश्वर का प्रतिनिधित्‍व है। परलोक में सबसे बड़ा इनाम सच्चाई की दावत देने वालों के लिए रखा गया है। ज़ाहिर है कि इससे बड़ा कोई काम इस दुनिया में नहीं हो सकता। यही कारण है कि दावत में व्यस्त होने वाले लोग उस बड़ी क़ुर्बानी के लिए तैयार हो जाते हैं, जो किसी और तरीक़े से संभव नहीं।

ईश्‍वरीय निमंत्रण का मिशन किसी इंसान के लिए सबसे बड़ी चीज़ है। इसकी तुलना में सारी चीज़ें छोटी हैं। मुसलमानों के बीच वर्तमान मतभेद इसीलिए हैं कि मुस्लिम समुदाय के लोगों के सामने कोई बड़ा उद्देश्‍य नहीं। अगर उनके सामने कोई बड़ा उद्देश्‍य आ जाए तो वे ख़ुद ही छोटी-छोटी चीज़ों को छोड़ने के लिए राज़ी हो जाएँगे और नि:संदेह बड़े उद्देश्‍य के लिए छोटी–छोटी चीज़ों को छोड़ने के नतीजे ही का दूसरा नाम एकता है।
नोट :- यह लेख अरबी भाषा में ‘अल जामियातुल इस्लामिया मदीना मुनव्‍वरा’ में 2 मार्च, 1984 को पढ़कर सुनाया गया।

Maulana Wahiduddin Khan
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