यूसुफ़ के ज़माने में बीसवीं शताब्दी ईसा पूर्व मेंइसराईली, मिस्र (Egypt) में दाख़िल हुए और मूसा के ज़माने में तेरहवीं शताब्दी ईसा पूर्व में मिस्र से निकलकर सीना मरुस्थल में गए। इन दोनों घटनाओं का बाइबल में भी वर्णन है और क़ुरआन में भी, मगर क़ुरआन में किए गए वर्णन इतिहास से पूरी समानता रखते हैं, जबकि बाइबल में कई बातें ऐसी हैं, जो ऐतिहासिक घटनाओं से समानता नहीं रखतीं। इसलिए बाइबल पर विश्वास करने वालों के लिए यह समस्या पैदा हो गई है कि वे बाइबल के बयान को लें या इतिहास को, क्योंकि दोनों को एक ही समय लेना संभव नहीं।
12 जनवरी, 1985 को नई दिल्ली के इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ इस्लामिक स्टडीज (तुग़लक़ाबाद) में सम्मेलन था। इस सम्मेलन के वक्ता एज़रा कॉलेट थे, जो भारत में रहने वाले यहूदियों की समिति (Council of Indian Jews) के अध्यक्ष हैं। भाषण का शीर्षक था— “यहूदीवाद क्या है?”
यहूदी वक्ता ने अपने भाषण में स्वाभाविक रूप से यहूदियों के इतिहास का वर्णन किया। उन्होंने मिस्र में उनके जाने और फिर वहाँ से निकलने का भी वर्णन किया। इस सिलसिले में यूसुफ़ और मूसा का ज़िक्र आया तो उन्होंने यूसुफ़ के समय में मिस्र के बादशाह को भी फ़िरऔन कहा और मूसा के समय में मिस्र के बादशाह को भी फ़िरऔन बताया।
हर ज्ञानी जानता है कि यह बात ऐतिहासिक दृष्टि से ग़लत है। इतिहास बताता है कि ‘फ़िरऔन’ नाम के बादशाह केवल बाद में मूसा के ज़माने में हुए। इससे पहले यूसुफ़ के ज़माने में दूसरे लोग मिस्र के शासक थे।
यूसुफ़ जिस ज़माने में मिस्र में दाख़िल हुए, उस ज़माने में वहाँ उन लोगों का शासन था, जिनको इतिहास में हिक्सोस बादशाह (Hyksos : चरवाहा) कहा जाता है। ये लोग अरब नस्ल से संबंध रखते थे और उन्होंने बाहर से आकर मिस्र पर क़ब्ज़ा कर लिया था। यह ख़ानदान दो हज़ार वर्ष ईसा पूर्व से लेकर 15वीं शताब्दी ईसा पूर्व के अंत तक मिस्र पर शासन करता रहा। इसके बाद मिस्र में विदेशी शासकों के विरुद्ध विद्रोह हुआ और हिक्सोस का शासन समाप्त हो गया।
इसके बाद मिस्र में मिस्र वालों का शासन स्थापित हुआ। उस समय जिस ख़ानदान को मिस्र की बादशाहत मिली, उसने अपने शासकों के लिए फ़िरऔन की उपाधि को पसंद किया। फ़िरऔन का शाब्दिक अर्थ सूरज देवता की संतान का है। उस ज़माने में मिस्र के लोग सूरज को पूजते थे। इसलिए शासकों ने ऐसे दिखाया किया कि उनका संबंध सूरज देवता से है, ताकि मिस्र के लोगों पर अपने शासन का अधिकार साबित किया जा सके।
एज़रा कॉलेट ने जो कुछ किया, वह मजबूर थे कि वैसा ही करें, क्योंकि बाइबल में ऐसा ही लिखा हुआ है। बाइबल यूसुफ़ के समय में मिस्र के बादशाह को भी फ़िरऔन कहती है और मूसा के समय में मिस्र के बादशाह को भी फ़िरऔन कहती है। एज़रा कॉलेट या तो बाइबल को ले सकते थे या इतिहास को, दोनों को साथ लेना संभव न था। उन्होंने यहूदी परिषद का अध्यक्ष होने की हैसियत से इतिहास को छोड़ा और बाइबल को अपना लिया, लेकिन क़ुरआन इस तरह की विरोधाभासी बातों से ख़ाली है। इसलिए क़ुरआन के मानने वालों के लिए यह समस्या नहीं कि क़ुरआन को लेने के लिए उन्हें ऐतिहासिक वास्तविकता को छोड़ना पड़े।
जिस समय क़ुरआन आया उस समय यह ऐतिहासिक घटनाएँ लोगों को मालूम न थीं। यह इतिहास अभी तक प्राचीन स्मृतियों के रूप में ज़मीन के नीचे दफ़न था, जिनको बहुत बाद में ज़मीन की खुदाई से बरामद किया गया और उनकी बुनियाद पर मिस्र का इतिहास क्रमबद्ध किया गया।
इसके बावजूद हम देखते हैं कि क़ुरआन में मूसा के समय में बादशाह का वर्णन आता है तो क़ुरआन इसके लिए मालिके-मिस्र (मिस्र का बादशाह ) शब्द का प्रयोग करता है और मूसा के समय में मिस्र के बादशाह का ज़िक्र आता है तो वह उसे बार-बार फ़िरऔन कहता है। इस तरह क़ुरआन का बयान बाहरी ऐतिहासिक हक़ीक़त के बिल्कुल समान है, जबकि बाइबल का बयान बाहरी ऐतिहासिक हक़ीक़त से टकरा रहा है। यह घटना बताती है कि क़ुरआन का रचयिता (लेखक) एक ऐसा रचयिता है, जो इंसानी जानकारी से आगे सारी हक़ीक़तों को सीधे तौर पर देख रहा है।