न्‍यूटन का प्रकाश का सिद्धांत

इंसान जब किसी विषय पर बात करता है तो स्पष्ट हो जाता है कि वह ‘वर्तमान’ में बोल रहा है, उसे भविष्‍य की कोई ख़बर नहीं। कोई इंसान आगे ज़ाहिर होने वाली हक़ीक़तों को नहीं जानता, इसलिए वह उनको ध्यान मैं रखकर अपनी बात नहीं कर सकता। यह एक ऐसा मापदंड है, जिस पर आदमी हमेशा नाकाम साबित होता है। इसके विपरीत क़ुरआन को देखा जाए तो ऐसा मालूम होता है कि क़ुरआन का रचयिता एक ऐसी हस्‍ती है, जिसकी नज़र अतीत से भविष्‍य तक समान रूप से फैली हुई है। वह आज की ज्ञात घटनाओं को भी जानता है और उन घटनाओं को भी, जो कल इंसान के ज्ञान में आएँगी। उदाहरण के लिए— न्‍यूटन (1642-1727) ने प्रकाश के बारे में यह दृष्टिकोण बनाया कि यह छोटे-छोटे प्रकाशमान कण हैं, जो अपने स्रोत से निकलकर वातावरण में उड़ते हैं। इस सिद्धांत को विज्ञान के इतिहास में ‘प्रकाश कणिका का सिद्धांत’ (corpuscular theory of light) कहा जाता है।

A theory of optics in which light is treated as a stream of particles.

न्‍यूटन के असाधारण प्रभावों के तहत यह सिद्धांत 1820 तक ज्ञानात्‍मक दुनिया पर छाया रहा। इसके बाद इसका पतन शुरू हुआ। अनेक वैज्ञानिकों की जाँच-पड़ताल, विशेष रूप से फोटोंस (Photons) की प्रक्रिया की खोज ने प्रकाश कणिका के सिद्धांत को समाप्‍त कर दिया। प्रोफ़ेसर यंग और दूसरे वैज्ञानिकों की खोजों ने विद्वानों को संतुष्‍ट कर दिया कि प्रकाश बुनियादी तौर पर तरंगों (waves) जैसी विशेषताएँ रखता है, जो स्पष्ट है कि न्‍यूटन के कणिका सिद्धांत के विपरीत है।

Young’s work convinced scientists that light has essential wave characteristics. It is a contradiction to Newton’s corpuscular Particle theory. (Encyclopedia Britannica, 1984, Vol 19, p. 665)

न्‍यूटन ने अठारहवीं शताब्दी में अपना सिद्धांत पेश किया और केवल दो सौ वर्ष के अंदर ही वह ग़लत साबित हो गया। इसके विपरीत क़ुरआन ने सातवीं शताब्‍दी में अपना संदेश दुनिया के सामने रखा और 1400 वर्ष गुज़रने के बाद भी उसकी सच्चाई आज तक संदिग्ध नहीं हुई। क्‍या इसके बाद भी इस विश्‍वास के लिए किसी सबूत की ज़रूरत है कि न्‍यूटन जैसे लोगों का कथन सीमित मानवीय कथन है और क़ुरआन असीमित ज़हन से निकला हुआ ईश्वरीय कथन। क़ुरआन के बयानों का हमेशा के लिए सही साबित होना एक बहुत ही असाधारण गुण है, जो किसी भी दूसरे कथन को प्राप्‍त नहीं। केवल यही घटना इस बात को साबित करने के लिए काफ़ी है कि क़ुरआन ईश्वरीय कथन है और बाक़ी सभी कथन मानवीय कथन है।

Maulana Wahiduddin Khan
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