पैग़म्बर का तरीक़ा
इमाम मुस्लिम अपनी सहीह में कहते हैं कि मुझसे इब्ने अबी उमर ने कहा, उन से मर्वान फ़ज़ारी ने बयान किया, उनसे यज़ीद बिन कयसान ने, उनसे इब्ने अबी हाज़िम ने और उन से अबू हुरैरा ने कहा कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से कहा गया कि आप मुश्रिकों के ख़िलाफ़ बद्दुआ करें। आपने फ़रमाया कि मुझको ला’नत करने वाला बना कर नहीं भेजा गया है, बल्कि मुझको रहमत बना कर भेजा गया है।
रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम पर और आपके सहाबियों और साथियों पर उनके दुश्मनों ने जो मुसीबतें डालीं और ज़ुल्म किया वह आज के ज़ुल्म और मुसीबत से बहुत ज़्यादा था। यहां तक कि मुक़द्दस सहाबा इन जुल्मों को देख कर कह उठे कि उनके ख़िलाफ़ बद्दुआ की जाए। मगर रसूलुल्लह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने उनके ज़ेहन को सही किया। उन्होंने फ़रमाया कि हमारा काम दुनिया को ख़ुदा की रहमतों के साये में दाख़िल करना है न कि उनकी हलाकत और बरबादी का सामान करना।
यह रसूलुल्लह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की सुन्नत है। आपके ख़िलाफ़ लोगों ने ज़ुल्म किया, इसके बावजूद आपने उनके साथ ख़ैरख़्वाही की। लोगों ने आपके ऊपर मुसीबतें डालीं, इसके बावजूद आप उनके लिए अल्लाह तआला से दुआ करते रहे। रसूलुल्लह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के इसी आला और बेहतर सुलूक का नतीजा था कि आपको दुनिया में आलातरीन कामयाबी हासिल हुई। क़ौमें आपके आगे झुक गईं। ज़ुल्म और सरकशी करने वाले आपके हाथ पर बैअत करके यानी आपसे दीक्षा लेकर आपके साथी और सहयोगी बन गए।
मुलसमानों को भी अपने पैग़म्बर के इसी नमूने पर अमल करना है। हमको दुनिया की क़ौमों का ख़ैरख़्वाह और उनकी भलाई चाहने वाला बनना है, चाहे वे हमारे साथ बदख़्वाही और बुराई करें।
हमें लोगों के हक़ में हिदायत की दुआ करना है, चाहे वे हमारे साथ ज़ुल्म और ज़्यादती का मामला करें। हमें दूसरे से मुहब्बत करना है, चाहे हमें दूसरों की तरफ़ से नफ़रत, घृणा और वैर मिले।
यही पैग़म्बर का तरीक़ा है। और पैग़म्बर का तरीक़ा इख़्तियार करने के बाद ही मुसलमान ख़ुदा की उन नुसरतों और मदद के हक़दार बन सकते हैं जिनका वा’दा ख़ुदा ने अपने पैग़म्बर के ज़रिए उनके लिए किया है।