कम पर राज़ी होना

रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम मदीना में थे। आपने ख़्वाब देखा कि अपने सहाबियों के साथ मक्का में दाखिल हुए। आपने वहां तवाफ़ (प्ररिक्रमा) और सअइ किया। क़ुर्बानी और सर मुंडाया। आपने अपना ख़्वाब सहाबियों को बताया तो वे बहुत ख़ुश हुए। उन्होंने समझा कि यह अल्लाह की तरफ़ से उमरा की बशारत (ख़ुशख़बरी) है।

आप और आपके सहाबी मक्का से 9 मील फ़ासिले हुदैबिया पंहुचे थे कि क़ुरैश ने आगे बढ़ कर आपको रोक दिया। और कहा कि हम आप लोगों को मक्का में दाख़िल होने नहीं देंगे। इसके बाद दोनों के दरमियान बातचीत शुरू हुई। आख़िकार यह तय हुआ कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम सहाबियों के साथ मदीना वापस चले जाएं। अलबत्ता अगले साल ख़ामोशी के साथ आकर उमरा कर सकते हैं।

इस समझौते के मुताबिक़ आपने फ़ैसला किया कि उमरा न करें और हुदैबिया से वापस होकर मदीना चले जाएं। फिर भी क़ुर्बानी के जानवर आपके साथ मौजूद थे। आपने फ़रमाया कि हम तवाफ़ और सअइ नहीं कर सके फिर भी क़ुर्बानी और हल्क़ हम कर सकते हैं। उठो अपने जानवरों को ज़ब्ह करो और सर बाल मुंडा लो।

यह गोया कम पर राज़ी होना था। हांलाकि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के ख़्वाब की बिना पर लोगों को पूरा यक़ीन हो गया था कि मक्का में दाख़िल होंगे। तवाफ़ और सअइ करेंगे। और फिर क़ुर्बानी और हल्क़ करेंगे। मगर जब ऐसे हालात सामने आए कि तवाफ़ और सअइ बज़ाहिर नामुमकिन हो गया और सिर्फ़ क़ुर्बानी और हल्क़ मुमकिन रह गया तो उन्होंने मक्का में दाख़िल होने और तवाफ़ और सअइ करने का इरादा छोड़ दिया और क़ुर्बानी और हल्क़ पर राज़ी हो गए।

यही ज़िन्दगी का राज़ है। इस दुनिया में आदमी को कम पर राज़ी होना पड़ता है, उसके बाद वह ज़्यादा को पाता है। जो शख़्स पहले मरहले में कम पर राज़ी न हो वह न कम पाता और न ज़्यादा को। उसके हिस्से में जो चीज़ आती है वह सिर्फ़ यह कि वह निज़ाअ और झगड़े को छेड़ कर ग़ैर ज़रूरी तौर पर अपने को बरबाद करता है। और जब बरबाद होकर टकराव के क़ाबिल न रहे तो यह कह कर अपने दिल को तस्कीन देने की कोशिश करे कि मैं कामयाबी के बिल्कुल क़रीब पहुंच गया था, मगर दुश्मनों की साज़िश ने मुझको नाकाम बना दिया।

कम पर राज़ी होना भी रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की सुन्नतों में से एक सुन्नत है।

ख़ादिम की कोताहियों पर उसे माफ़ करना

अब्दुल्लाह विन उमर कहते हैं कि एक देहाती रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के पास आया और आपसे पूछा, “ऐ ख़ुदा के रसूल, मैं अपने ख़ादिम (सेवक) को कितनी बार माफ़ करूं?” आपने फ़रमायाः सत्तर बार माफ़ करो (तिरमिज़ी, अबूदाऊद)

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