कृतज्ञता का महत्‍व

इंसान का स्‍वभाव यह है कि जो कुछ उसे मिला हुआ है, उस पर वह संतुष्‍ट नहीं होता और जो कुछ नहीं मिला है, उसके पीछे दौड़ता है।

चार्ल्‍स‍ रिक्‍टर एक अमेरिकी विज्ञानी थे। उनकी गिनती भूकंप के कुशल विशेषज्ञों में की जाती है। उन्‍होंने एक विशेष यंत्र का आविष्‍कार किया था, जो आज संसार भर में भूकंप की उत्‍पन्‍न की हुई शक्ति को मापने के लिए प्रयोग किया जाता है। इसे रिक्‍टर स्‍केल कहते हैं।

चार्ल्‍स‍ रिक्‍टर ने कैलिफोर्निया के इंस्‍टीट्यूट ऑफ़ टेक्नोलॉजी में आधी शताब्‍दी तक भूकंप का अध्‍ययन किया था । उन्‍होंने कहा था— उनसे अक्‍सर पूछा जाता है कि भूकंप के ख़तरे से बचने के लिए इंसान को कहाँ भागना चाहिए? कैलिफोर्निया में इसका उत्तर बिल्‍कुल साधारण है— वह यह कि कहीं नहीं। अमेरिका के 48 राज्‍यों में भूकंप का सबसे कम ख़तरा फ्लोरिडा और तटीय टेक्सॉस में है, लेकिन मैं फिर प्रश्न करूँगा कि तूफ़ान के बारे में उनका क्‍या विचार है? वास्तविकता यह है कि हर क्षेत्र के अपने कुछ ख़तरे हैं, इसलिए एकमात्र उपाय यह है कि इंसान किसी दूसरे स्‍थान पर चला जाए और किसी दूसरे ख़तरे को सहन करे।

(हिंदुस्तान टाइम्स, 7 अक्‍टूबर, 1980)

इंसान का स्‍वभाव यह है कि जो कुछ उसे मिला हुआ है, उस पर वह संतुष्‍ट नहीं होता और जो कुछ नहीं मिला है, उसके पीछे दौड़ता है। इसी स्‍वभाव का यह परिणाम है कि हर इंसान असंतुष्‍ट जीवन व्यतीत करता है। कोई प्रत्‍यक्ष सौभाग्‍य वाला इंसान जिसको लोग ईर्ष्‍या-योग्‍य समझते हैं, वह भी अपने अंदर से उतना ही असंतुष्‍ट होता है, जितना कि वह लोग जो उसको ईर्ष्‍या-योग्‍य समझते हैं। वह भी अपने अंदर से इतना ही असंतुष्ट होता है, जितना कि वह लोग जो उसको ईर्ष्‍या की दृष्टि से देख रहे होते हैं।

 हर इंसान को कोई-न-कोई नेमत मिली हुई है, लेकिन जिसके अंदर कृतज्ञता की मानसिकता नहीं होती, वह अप्राप्‍त नेमत की ओर केंद्रित रहता है और जो नेमत हर समय उसे प्राप्‍त है, उसको कम समझता है। ऐसे इंसान के अंदर अपने ईश्वर के लिए कृतज्ञता की भावना नहीं उभरती। वह ठीक उसी चीज़ से वंचित रह जाता है, जिसको उसे सबसे अधिक अपने सीने के अंदर पोषित करना चाहिए।

वर्तमान संसार को ईश्वर ने इस तरह बनाया है कि यहाँ पूरी सुविधा किसी के लिए नहीं है। जब एक टापू पर रहने वाला इंसान वहाँ की समस्‍याओं से घबराकर दूसरे टापू पर चला जाए तो उसको दूसरे टापू पर पहुँचकर पता चलेगा कि यहाँ भी अनेक समस्याएँ हैं। इसी प्रकार अगर कम आमदनी वाले की समस्याएँ हों तो अधिक आमदनी वाले की भी समस्याएँ हैं। अगर कमज़ोर इंसान की समस्याएँ हैं तो उनकी भी अपनी समस्याएँ हैं, जिनको शक्ति प्राप्‍त है। परीक्षा के इस संसार में किसी भी इंसान को समस्याओं से छुटकारा नहीं। इंसान को चाहिए कि वह जिन समस्‍याओं के बीच खड़ा है, उनको सहन करते हुए अपनी यात्रा जारी रखे। उसके ध्‍यान का केंद्र ईश्वर की प्रसन्‍नता प्राप्त करना हो, न कि समस्‍याओं से पवित्र जीवन का स्‍वामी बनना, क्‍योंकि वह परलोक से पहले संभव नहीं।

Maulana Wahiduddin Khan
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