पैग़ंबर ने बताया कि इंसान से यह अपेक्षा है कि जिस ईश्वर का आज्ञापालन सारी सृष्टि बल के अधीन कर रही है, उसी ईश्वर का आज्ञापालन इंसान संकल्प के अंतर्गत करने लगे।
हमें भूख लगती है। हम अपनी भूख मिटाने का प्रयास करते हैं। यहाँ तक कि सिद्ध होता है कि यहाँ खाना उपस्थित था, जो हमारी भूख मिटाए। हमें प्यास लगती है। हम अपनी प्यास को बुझाने के लिए प्रयास करते हैं। यहाँ तक कि पता चल जाता है कि यहाँ पानी उपस्थित था, जो हमारी प्यास को बुझाए। ऐसा ही मामला सत्य का है। इंसान सदैव सत्य की खोज में है। यह खोज ही इस बात को सिद्ध कर रही है कि यहाँ कोई सत्य है, जिसे इंसान को जानना चाहिए। सत्य खाने और पीने से अधिक बड़ा है। फिर जब हमारी छोटी इच्छा का उत्तर इस संसार में उपस्थित है तो हमारी बड़ी इच्छा का उत्तर यहाँ क्यों नहीं उपस्थित होगा!
सत्य का प्रश्न अपनी वास्तविकता को जानने का प्रश्न है। इंसान अचानक एक दिन पैदा हो जाता है। हालाँकि उसने स्वयं को पैदा नहीं किया है। वह स्वयं को संसार में पाता है, जो इससे अलग स्वयं अपने आप स्थित है। वह पचास वर्ष या सौ वर्ष इस संसार में रहकर मर जाता है। उसे यह पता नहीं कि वह मरकर कहाँ जाता है। जीवन और मृत्यु, इस वास्तविकता को जानने का प्रश्न ही सत्य का प्रश्न है।
एक इंसान जिस प्रकार खाना और पानी को जान लेता है, उसी प्रकार वह सत्य को नहीं जान सकता। सत्य निश्चित रूप से असीमित और अनंत है। सत्य अगर असीमित और फिर स्थायी न हो तो वह सत्य नहीं, लेकिन इंसान की बुद्धि और उसकी आयु दोनों सीमित हैं। सीमित बुद्धि असीमित सत्य तक नहीं पहुँच सकती, सीमित आयु का इंसान अनंत सत्य की खोज नहीं कर सकता।
इंसान का यही न जानना यह सिद्ध करता है कि सत्य को जानने के लिए उसे पैग़ंबर की आवश्यकता है। पैग़ंबरी क्या है? पैग़ंबरी का अर्थ यह है कि वह सत्य, जहाँ तक इंसान अपने आप नहीं पहुँच सकता था, वह स्वयं इंसान तक पहुँच जाए। जिस सत्य को हम अपने प्रयासों से नहीं जान सकते, वह स्वयं प्रकट होकर अपने बारे में हमें बता दे।
वास्तविकता से लोगों को पहले ही सूचित करने के लिए उसको ईश्वर ने पैग़ंबर के माध्यम से खोला। वर्तमान परीक्षा का समय समाप्त होने के बाद उसे सीधे तौर पर हर इंसान पर प्रकट कर दिया जाएगा। पैग़ंबर ने बताया कि इंसान से यह अपेक्षा है कि जिस ईश्वर का आज्ञापालन सारी सृष्टि बल के अधीन कर रही है, उसी ईश्वर का आज्ञापालन इंसान संकल्प के अंतर्गत करने लगे। वह अपने अधिकार से स्वयं को ईश्वर के आगे अधिकारहीन बना ले। ईश्वर की दी हुई स्वतंत्रता के पश्चात भी जो लोग ईश्वर के अधीन बन जाएँ, उनके लिए स्वर्ग है और जो लोग स्वतंत्रता पाकर विद्रोही बन जाएँ, उनके लिए नरक।