अंतरात्मा के विरुद्ध

इंसान की सबसे बड़ी हानि यह है कि वह अपनी अंतरात्मा का साथ न दे सके। ज़िद और पक्षपात में डूबकर वह एक ऐसी दिशा में चलने लगे, जिसके बारे में उसकी अंतरात्‍मा आवाज़़ दे रही हो कि वह सही दिशा नहीं।

प्रसिद्ध अंग्रेज़ इतिहासकार आर्नोल्ड टॉयनबी (1889-1975) ने अपने जीवन के अंतिम दौर में एक बार कहा कि फ़िलिस्तीन पर यहूदियों का ऐतिहासिक रूप से अपना अधिकार जताना ऐसा ही है, जैसे रेड इंडियन क़बीले कनाडा की वापसी की माँग करें। यहूदियों नें नाज़ियों के अत्‍याचार पर असंख्‍य पुस्‍तकें लिखी हैं, लेकिन स्वयं यहूदी फ़िलिस्तीनी अरबों के साथ जो बर्बरतापूर्ण व्यवहार कर रहे हैं, वह बिल्‍कुल उसी प्रकार का है, जो नाज़ियों ने यहूदियों के साथ किया था।

टॉयनबी ने अपना यह बयान कनाडा में दिया था। उस समय कनाडा में इज़राइली सरकार के राजदूत मिस्‍टर हरजग थे। मिस्‍टर हरजग ने ब्रिटिश इतिहासकार को निमंत्रण दिया कि वह इस समस्‍या पर उससे बहस करें। आर्नोल्ड टॉयनबी ने इस निमंत्रण को स्‍वीकार कर लिया। इसके बाद मांट्रियल की मैकगिल यूनिवर्सिटी में एक आयोजन हुआ, जिसमें दोनों ने हिस्सा लिया। मिस्‍टर हरजग ने कहा, “जर्मन नाज़ियों ने साठ लाख यहूदियों को मार डाला था। इसकी तुलना में फ़िलिस्‍तीन में जो अरब बेघर हुए हैं, उनकी संख्या बहुत मामूली है। इन दोनों को एक जैसा कैसे कहा जा सकता है?”

आर्नोल्ड टॉयनबी ने उत्तर दिया कि मैंने जब नाज़ियों और इज़राइलियों के अत्याचारों को एक जैसा कहा था तो इससे मेरा अभिप्राय संख्‍या नहीं, बल्कि अपराध की विशेष स्थिति थी। किसी इंसान के लिए सौ प्रतिशत से अधिक बुरा होना संभव नहीं। हत्यारा कहलाने के लिए एक आदमी की हत्या करना काफ़ी है। मैं हैरान हूँ कि आप लोग मेरे शब्‍दों पर क्‍यों इतना बौखला उठे हैं? मैंने वही बात कही है, जो तुममें से हर एक की अंतरात्‍मा कह रही है।

जब भी इंसान किसी सच्‍चाई से इनकार करता है तो सबसे पहले वह स्वयं अपना इनकार कर रहा होता है। सच्‍चाई हमेशा इंसान के अपने हृदय की आवाज़ होती है, लेकिन इंसान ज़िद, पक्षपात और अपनी झूठी प्रशंसा को बनाए रखने के लिए इसे नहीं मानता। वह अपने इनकार को सही सिद्ध करने के लिए ऐसे शब्‍द बोलता है, जिनके बारे में स्वयं उसका हृदय गवाही दे रहा होता है कि उनमें कोई वज़न नहीं।

इंसान की सबसे बड़ी हानि यह है कि वह अपनी अंतरात्मा का साथ न दे सके। ज़िद और पक्षपात में डूबकर वह एक ऐसी दिशा में चलने लगे, जिसके बारे में उसकी अंतरात्‍मा आवाज़़ दे रही हो कि वह सही दिशा नहीं है यानी अपना खंडन स्वयं करना। यह अपने आपकी अपने हाथों से हत्या करना है। यह अपने अपराधी होने पर स्वयं गवाह बनना है।

कैसा विचित्र है यह खोना, लेकिन जब इंसान की संवेदनहीनता बढ़ जाती है तो वह अपने खोने की इन कार्यवाहियों को अपनी जीत समझता है। वह अपने आपको समाप्त कर रहा होता है, लेकिन समझता है कि मैं अपने आपको जीवन दे रहा हूँ।

Maulana Wahiduddin Khan
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