जब पर्दा उठेगा

अचानक उसे अनुभव होगा कि वह सब कुछ केवल एक धोखा था, जिसे उसने सबसे बड़ी वास्तविकता समझ लिया था।

अमेरिकी राष्‍ट्रपति रोनाल्‍ड रीगन 30 मार्च, 1981 को विश्‍वासपूर्ण चेहरे के साथ अपने राष्‍ट्रपति भवन (‍व्हाइट हाउस) से निकले। कारों का क़ाफ़िला उन्हें लेकर वाशिंगटन के हिल्‍टन होटल की ओर रवाना हुआ। प्रोग्राम के अनुसार उन्होंने होटल के शानदार हॉल में एक भाषण दिया।

प्रशंसा और वाहवाही के वातावरण में उनका भाषण समाप्‍त हुआ। वे आदमियों की भीड़ में हँसते हुए चेहरे के साथ बाहर आए। वे अपनी बुलेट प्रूफ़ लिमोज़िन कार से कुछ क़दम की दूरी पर थे कि अचानक बाहर ख़ड़ी हुई भीड़ की ओर से गोलियों की आवाज़ आने लगी। एक नवयुवक जॉन हिंकले ने दो सेकंड के अंदर छ: फायर किए। एक गोली मिस्‍टर रीगन के सीने में लगी। वे ख़ून से लथपथ हो गए और तुरंत अस्‍पताल पहुँचाए गए। अचानक गोली लगने के बाद अमेरिकी राष्‍ट्रपति का जो हाल हुआ, उसे ए० पी० कार पोर्टर ने इन शब्‍दों में बयान किया है—

“Mr. Reagan appeared stunned. The smile faded from his lips.”

“मिस्टर रीगन जैसे सुन्‍न हो गए, मुस्‍कराहट उनके होंठों से ग़ायब हो गई।” (टाइम्‍स ऑफ़ इंडिया; 31 मार्च, 1981)

यह घटना इस स्थिति की एक तस्वीर है, जो मृत्यु के ‘हमले’ के समय अचानक इंसान पर छाएगी।

इंसान वर्तमान संसार में अपने को स्वतंत्र समझ रहा है। वह निडर होकर जो चाहे बोलता है और जो चाहे करता है। अगर किसी को कुछ माल हाथ आ गया है तो वह समझता है कि मेरा भविष्‍य सुरक्षित है। किसी को कोई सत्ता प्राप्त हो तो वह अपनी सत्ता का इस प्रकार प्रयोग करता है, जैसे उसकी सत्ता कभी छिनने वाली नहीं। हर इंसान विश्‍वास से भरा हुआ चेहरा लिये हुए है। हर इंसान हँसते हुए अपनी ‘लिमोज़िन’ की ओर बढ़ रहा है। इसके बाद अचानक पर्दा उठता है। मृत्यु का देवता उसे वर्तमान संसार से निकालकर अगले संसार में पहुँचा देता है।

यह हर इंसान के जीवन का एक बहुत ही डरावना पल है। जब यह पल आता है तो इंसान अपने अनुमान के बिल्‍कुल विपरीत परिस्थितियों को देखकर डर जाता है। अचानक उसे अनुभव होता है कि वह सब कुछ केवल एक धोखा था, जिसे उसने सबसे बड़ी वास्तविकता समझ लिया था। मैंने अपने आपको स्वतंत्र समझा था, लेकिन मैं तो बिल्‍कुल अधिकारहीन निकला। मैं अपने आपको धन-संपत्ति वाला पा रहा था, लेकिन मैं तो बिल्‍कुल ख़ाली हाथ था। मेरा विचार था कि मेरे पास शक्ति है, लेकिन मैं तो ईश्वर के इस संसार में मक्‍खी और मच्‍छर से भी अधिक कमज़ोर था। मैं समझता था कि मेरे साथ बहुत सारे लोग हैं, लेकिन यहाँ तो मेरा कोई भी नहीं।

आह! वह इंसान जो इसी बात को नहीं जानता, जिसको उसे सबसे अधिक जानना चाहिए।

Maulana Wahiduddin Khan
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