मृत्यु इंसान को याद दिलाती है कि वह आज से ऊपर उठकर सोचे। वह सफलता को जीवन के उस पार खोजे।
कछुआ पाँच सौ वर्ष तक जीवित रहता है। पेड़ एक हज़ार वर्ष तक धरती पर खड़ा रहता है। पहाड़ और नदी लाखों-करोड़ों वर्ष तक अपने गौरव को बनाए रखते हैं, लेकिन इंसान की उम्र पचास वर्ष या सौ वर्ष से अधिक नहीं। इंसान प्रत्यक्ष रूप से समस्त प्राणियों में सबसे अधिक शिष्ट और श्रेष्ठ है, लेकिन वह सबसे कम जीवन पाता है।
इससे भी अधिक अद्भुत बात यह है कि यह संक्षिप्त जीवन भी असफलताओं की एक निरंतर कहानी के सिवा और कुछ नहीं। इंसान का जीवन शोक और दुख से इतना अधिक भरा हुआ है कि प्रसन्नता के पल लापरवाही की कुछ झलकियों से अधिक वास्तविकता नहीं रखते। बीमारी, दुर्घटना, बुढ़ापा और आशाओं के लगातार टूटने का नाम जीवन है और अंततः इस प्रकार के कष्टदायी दिनों को व्यतीत करते हुए एक दिन मृत्यु के आगे पराजित हो जाना।
एक ग़रीब आदमी को खेद होता है कि उसके पास बड़ा घर नहीं। उसके पास जीवन की आवश्यकताओं के लिए पर्याप्त धन नहीं, लेकिन दूसरी ओर उन लोगों की स्थिति भी बहुत अधिक अलग नहीं, जिनको एक ग़रीब आदमी उनके जैसा होने की दृष्टि से देखता है। धनवान आदमी के लिए पैसा होना इससे अधिक बड़ी समस्याएँ पैदा करता है, जो एक ग़रीब आदमी को पैसा न होने की स्थिति में नज़र आती हैं। एक प्रसिद्ध आदमी जिसके चारों ओर लोगों की भीड़ लगी हुई हो, अंदर से इस प्रकार व्याकुल होता है कि रात को गोली खाए बिना उसे नींद नहीं आती। कहने का अर्थ यह है कि इस संसार में हर इंसान दुखी है, कोई एक रूप में तो कोई दूसरे रूप में।
आप मान लें कि कोई इंसान प्रतिकूल परिस्थितियों से बच जाए और इस सौभाग्य को प्राप्त कर ले जिसको सुख-चैन कहते हैं, तब भी कितने दिन तक? अगर कोई इंसान संयोगी साधनों के अंतर्गत प्रसन्नता का भंडार अपने इर्द-गिर्द इकट्ठा कर ले तो वह भी बस सुबह से शाम तक के लिए होगा। इसके बाद अचानक मृत्यु का निर्दयी देवता आएगा और उसे इस प्रकार पकड़ लेगा कि न उसकी संपत्ति उसे बचा सकेगी और न ही उसकी फ़ौज। हवाई जहाज़ के यात्री को भी मृत्यु इसी प्रकार नियंत्रण में ले लेती है, जिस प्रकार एक पैदल चलने वाले आदमी को। वह शानदार महलों में भी इसी प्रकार विजयी अंदाज़ में प्रविष्ट हो जाती है, जिस प्रकार एक टूटे-फूटे मकान में। मृत्यु इंसान की सबसे बड़ी मजबूरी है।
मृत्यु इंसान को याद दिलाती है कि वह आज से ऊपर उठकर सोचे। वह सफलता को जीवन के उस पार खोजे। सफल इंसान वही है, जो मृत्यु से यह सीख प्राप्त कर ले। जो इंसान यह सीख लेने से वंचित रहे, उसकी प्रसन्नता के दीये बहुत जल्द बुझ जाएँगे। वह अपने आपको एक ऐसे भयानक अँधेरे में पाएगा, जहाँ वह सदैव ठोकरें खाता रहे और कभी इससे निकल न सके।