हमारे चारों ओर जो संसार है, इसको हम बचपन से देखते-देखते आदी हो जाते हैं। इससे हम इतना प्रभावित हो जाते हैं कि इसके अनोखेपन का हमें अहसास नहीं होता।
सूर्य हमारी धरती से बारह लाख गुना बड़ा और इससे साढ़े नौ करोड़ मील दूर है, फिर भी सूर्य का प्रकाश और ताप अत्यधिक मात्रा में हम तक पहुँच रहा है। यह सूर्य ब्रह्मांड का एक छोटा तारा है, जो निकट होने के कारण हमें बड़ा दिखाई देता है। अधिकतर तारे सूर्य से बहुत अधिक बड़े होते हैं और इससे बहुत अधिक प्रकाशित भी। प्रकाश व ताप के यह महान संसार, जिन्हें नक्षत्र कहा जाता है, अनगिनत संख्या में अंतरिक्ष में फैले हुए हैं। खरबों वर्ष से दहकने के पश्चात भी उनका तापीय भंडार समाप्त नहीं होता।
नक्षत्रों में अत्यधिक ऊर्जा कैसे पैदा होती है? हैंस बेथे ने अंतरिक्ष विज्ञान के क्षेत्र में गहन अध्ययन के बाद बताया कि इसका रहस्य कार्बन साइकल है। इस अध्ययन पर उनको भौतिकी का नोबल पुरस्कार दिया गया।
डॉक्टर बेथे ने जिस दिन कार्बन साइकल की यह वैज्ञानिक खोज की, वह उनके लिए हर्ष और उत्तेजना का वह क्षण था, जिसका वर्णन करना संभव नहीं। उनकी पत्नी रोज़ बेथे कहती थीं कि रात का समय था। हम न्यू मैक्सिको के मरुस्थल में थे। मरुस्थलीय वातावरण में आकाश के तारे विचित्र गरिमा के साथ चमक रहे थे। रोज़ बेथे ने ऊपर निगाह की और आश्चर्यचकित होकर कहा, “आकाश के तारे कितने अधिक चमक रहे हैं!” डॉक्टर बेथे ने जवाब दिया, “क्या तुम्हें पता है कि इस समय तुम उस अकेले इंसान के निकट खड़ी हो, जो यह जानता है कि यह तारे अंततः क्यों चमकते हैं?”
हैंस बेथे की यह खोज मूल वास्तविकता का अत्यंत आंशिक पहलू थी। उन्होंने तारे में कार्बन साइकल की खोज की, लेकिन प्रश्न यह है कि स्वयं कार्बन साइकल की प्रक्रिया नक्षत्रों में क्यों है? इस बहुत बड़े रहस्य को मोमिन ईश्वर के रूप में खोजता है। ईश्वर पर ईमान एक खोज है, जो समस्त खोजों से बड़ी है, लेकिन कैसी विचित्र बात है कि वैज्ञानिक जब कोई साधारण खोज करता है तो वह बहुत अधिक भावुक हो जाता है, लेकिन जब ईमान वाले सबसे बड़ी चीज़ ईश्वर को खोजते हैं तो उनके अंदर कोई भावनात्मक उबाल पैदा नहीं होता। शायद ईश्वर पर ईमान के दावेदारों ने अभी ईश्वर को प्राप्त नहीं किया है।