परीक्षा-स्‍थल

ईश्वर चाहता है कि इंसान अपने आप पर ईश्वर का शासन स्थापित करने वाला बने और लोग किसी दूसरे इंसान के विरुद्ध उखेड़-पछाड़ करके ईश्वर की हुकूमत की स्‍थापना कर श्रेय लेने में व्‍यस्‍त हैं।

कॉलेज में परीक्षा हो रही थी। एक विद्यार्थी ने कमरे में प्रवेश किया, लेकिन उसने परीक्षा-कॉपी पर कुछ नहीं लिखा। वह बस बैठा हुआ सिगरेट पीता रहा और तीन घंटे बिताकर बाहर चला आया। इसके बाद वह लाइब्रेरी पहुँचा और वहाँ किताबों के बीच बैठकर पर्चा हल करना शुरू कर दिया। परीक्षा-कक्ष में उसने अपनी कॉपी बिल्कुल ख़ाली छोड़ दी थी, लेकिन लाइब्रेरी में उसने अपनी कॉपी भर डाली।

आप कहेंगे कि यह काल्‍पनिक कहानी है। कोई विद्यार्थी इतना मूर्ख नहीं हो सकता कि परीक्षा-कक्ष में पर्चा हल न करे और पुस्‍तकालय में बैठकर कॉपी भरने लगे और अगर यह घटना सच हो तो निश्चित ही वह कोई ऐसा विद्यार्थी होगा, जिसका दिमाग़ सही न हो।

यह सही है कि इस तरह की हरकत कोई मूर्ख विद्यार्थी ही कर सकता है, लेकिन संसार की परीक्षा के मामले में जो बात लोगों को इतनी विचित्र प्रतीत होती है, परलोक के मामले में हर इंसान इसी तरीक़े पर चल रहा है। कॉलेज के ज़िम्मेदार विद्यार्थियों की परीक्षा जहाँ लेना चाहते हैं, वह परीक्षा-कक्ष है, न कि लाइब्रेरी। इसी तरह ईश्वर की भी परीक्षा लेने की जगह है, लेकिन लोगों का हाल यह है कि ईश्वर ने परीक्षा के लिए जो जगह निर्धारित की है, वहाँ लोग परीक्षा में पूरा उतरने का प्रयास नहीं करते। इसके बजाय वे दूसरी जगहों पर ईश्वरभक्ति और धार्मिकता का कमाल दिखा रहे हैं।

ईश्वर इंसान के ईमान का प्रमाण अपने प्रति हार्दिक प्रेम में देखना चाहता है और लोग अपने ईमान का प्रमाण ईमान के कलिमा (श्लोक) के उच्चारण से दे रहे हैं। ईश्वर इंसान की भक्ति को अपने भय की कसौटी पर जाँच रहा है और लोग धार्मिक क्रिया (Rituals) की बाध्यता में अपनी भक्ति का प्रमाण एकत्र कर रहे हैं। ईश्वर लोगों के धर्म को चरित्र और व्‍यवहारों के स्‍तर पर जाँच रहा है और लोग वैकल्पिक नमाज़ द्वारा अपनी धार्मिकता का प्रदर्शन कर रहे हैं।

ईश्वर चाहता है कि इंसान अपने आप पर ईश्वर का शासन स्थापित करने वाला बने और लोग किसी दूसरे इंसान के विरुद्ध उखेड़-पछाड़ करके ईश्वर की हुकूमत की स्‍थापना कर श्रेय लेने में व्‍यस्‍त हैं। ईश्वर किसी इंसान को जहाँ पीड़ितों का समर्थन करने वाला देखना चाहता है, वहाँ लोगों का हाल यह है कि वे अत्याचार दंगों की सामूहिक घटनाओं पर केवल भाषणबाज़ी करके अपने को पीड़ितों का समर्थक सिद्ध करने में लगे हुए हैं।

हर इंसान जानता है कि किसी विद्यार्थी की वह कॉपी बिल्‍कुल बेकार है, जो परीक्षा-कक्ष के बजाय लाइब्रेरी में बैठकर भरी गई हो। काश! लोग जानते कि ठीक इसी तरह वह कार्य भी बेकार है, जो ईश्वर के निर्धारित स्थान के अतिरिक्‍त कहीं और किया गया है।

Maulana Wahiduddin Khan
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