उपास्य की माँग

इंसान रचयिता को नहीं देखता, इसलिए वह रचना को अपना इलाह बना लेता है। मोमिन वह है, जो प्रत्‍यक्ष से गुज़रकर भीतर तक पहुँच जाए

रूस के अंतरिक्ष यात्री आंद्रेन निकोलाइफ़ अगस्‍त, 1962 में जब एक अंतरिक्ष उड़ान से वापस आए तो 21 अगस्‍त की मास्‍को की एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में उन्होंने कहा—

  “जब मैं धरती पर उतरा तो मेरा जी चाहता था कि मैं धरती को चूम लूँ।”

इंसान जैसी एक रचना के लिए धरती पर जो अनगिनत अनुकूल सामान जमा है, वह ज्ञात ब्रह्मांड में कहीं भी नहीं। रूसी अंतरिक्ष यात्री धरती से दूर अंतरिक्ष में गया तो उसने पाया कि विशाल अंतरिक्ष में इंसान के लिए केवल आश्चर्य करने और भटकने के अलावा और कुछ नहीं है। वहाँ इंसान को न तो शांति मिल सकती है और न ही वहाँ उसकी आवश्यकताएँ पूरी करने का कोई सामान है। इस अनुभव के बाद जब वह धरती पर उतरा तो उसे धरती के मूल्‍य का बोध हुआ। ठीक वैसे ही, जैसे किसी प्‍यासे आदमी को पानी की महत्ता का बोध होता है। धरती अपनी समस्‍त अनुकूल संभावनाओं के साथ उसे इतनी प्रिय लगी कि उसका जी चाहा कि वह उससे लिपट जाए और अपनी भावनाओं प्रेम को उस पर न्‍योछावर कर दे।

यही वह चीज़ है कि जिसे इस्लाम में ‘इलाह बनाना कहा गया है। इंसान रचयिता को नहीं देखता, इसलिए वह रचना को अपना इलाह बना लेता है। मोमिन वह है, जो प्रत्‍यक्ष से गुज़रकर भीतर तक पहुँच जाए और जो इस वास्तविकता को जान ले कि यह जो कुछ दिखाई दे रहा है, यह किसी का दिया हुआ है। धरती पर जो कुछ है, वह सब श्रेष्‍ठ हस्‍ती का पैदा किया हुआ है। वह रचना को देखकर रचयिता को प्राप्त कर ले और रचयिता को अपना सब कुछ बना ले। यही नहीं, वह अपनी समस्‍त श्रेष्‍ठ भावनाओं को ईश्वर के लिए न्‍योछावर कर दे।

रूसी अंतरिक्ष यात्री पर जो अवस्‍था धरती को पाकर गुज़री, वह अवस्‍था अधिक वृद्धि के साथ इंसान पर ईश्वर को पाकर गुज़रनी चाहिए। मोमिन वह है, जो सूरज को देखे तो उसके प्रकाश से ईश्वर के प्रकाश को पा ले। वह आकाश की विशालताओं में ईश्वर की असीमितता का अवलोकन करने लगे। वह फूल की ख़ुशबू में ईश्वर की महक को पाए और पानी के बहने में ईश्वर के वरदान को देखे। मोमिन और ग़ैर-मो‍मिन में अंतर यह है कि ग़ैर-मोमिन की दृष्टि रचनाओं में अटककर रह जाती है और मोमिन रचनाओं से गुज़रकर रचनाकार तक पहुँच जाता है। ग़ैर-मो‍मिन रचनाओं की सुंदरता को स्वयं रचनाओं ही की सुंदरता समझकर इन्‍हीं में खो जाता है। मोमिन रचनाओं की सुंदरता में रचनाकार की सुंदरता देखता है और स्‍वयं को रचयिता के आगे डाल देता है। ग़ैर-मो‍मिन का सज्दा चीज़ों के लिए होता है और मोमिन का सज्दा चीज़ों के रचयिता के लिए।

Maulana Wahiduddin Khan
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