‘नज़र आने वाले’ संसार में इंसान की खोज का उत्तर उपस्थित नहीं है। इसका उत्तर उस ‘नज़र न आने वाले’ संसार में है, जिसको इंसान महसूस तो करता है, लेकिन देख नहीं पाता।
इंसान के अंदर एक विचित्र विशेषता है, जो किसी दूसरे प्राणी में नहीं हैं। वह है अंतहीन खोज की भावना। हर इंसान पैदाइशी भावना के अंतर्गत एक ऐसी लापता चीज़ की खोज में रहता है, जिसे उसने पाया ही नहीं। कोई भी सफलता उसको इस माँग के बारे में संतुष्ट नहीं करती, कोई भी असफलता उसके अंदर से इस भावना को मिटा नहीं पाती। दार्शनिक इसे आदर्श की माँग कहते हैं। यह आदर्श की माँग ही समस्त गतिविधियों की वास्तविकता और अंतिम शक्ति की प्रेरक है। अगर यह माँग न हो तो संसार की सारी गतिविधियाँ अचानक ठप्प होकर रह जाएँ।
इंसानी ज़हन (Mind) की यही वह ज़बरदस्त माँग है, जिसका फ्राइड ने ग़लत रूप से यौन-इच्छा से स्पष्टीकरण किया। एडलर ने इसे ग़लत रूप से शक्ति-प्राप्ति की रक्षा कहा। मैक डूगल ने ग़लत रूप से कहा कि यह इंसान की समस्त जैविक प्रवृत्ति के मिश्रण का रहस्यमय परिणाम है। मार्क्स ने इसे ग़लत रूप से यह सिद्ध करने का प्रयास किया कि यह मानवीय जीवन की आर्थिक इच्छा है और यही इसकी समस्त तत्परता को नियंत्रित करती है, लेकिन इन व्याख्याओं को ग़लत सिद्ध करने के लिए यही पर्याप्त है कि वह चीज़ें जिन लोगों को मिलीं, वे भी संतुष्ट न हो सके। उन्हें आंतरिक अस्तित्व भी इसी प्रकार व्याकुल कर रहा है, जिस प्रकार इन चीज़ों से वंचित रहने वाले असंतुष्ट नज़र आते हैं।
इंसान हज़ारों वर्ष से अपने इस आइडियल को सांसारिक चीज़ों में खोज रहा है, लेकिन कोई भी इंसान इस संतुष्टि से दो-चार नहीं हुआ कि उसने अपनी खोज का पूरा उत्तर पा लिया है। इस मामले में बादशाह या धनवान भी इतना ही असंतुष्ट रहता है, जितना कोई निर्बल और निर्धन आदमी। यह लंबा अनुभव यह सिद्ध करने के लिए पर्याप्त है कि ‘नज़र आने वाले’ संसार में इंसान की खोज का उत्तर उपस्थित नहीं है। इसका उत्तर उस ‘नज़र न आने वाले’ संसार में है, जिसको इंसान महसूस तो करता है, लेकिन देख नहीं पाता।
वास्तविकता यह है कि यह माँग ईश्वर की माँग है। इंसान जिस आइडियल को पाने के लिए व्याकुल रहता है, वह स्वयं उसका रचयिता है। हर इंसान जिस चीज़ की खोज में हैं, वह वास्तव में वह ईश्वर है, जो उसकी आत्मा में समाया हुआ है। हर इंसान अपने स्वभाव के अंतर्गत निरंतर ईश्वर की खोज में रहता है, वह अपने इन भीतरी उत्तरों के अंतर्गत संसार की विभिन्न चीज़़ों की ओर दौड़ता है और समझता है कि शायद यह चीज़ उसकी खोज का उत्तर हो, लेकिन जब वह इसे पा लेता है और निकट से इसका विश्लेषण करता है तो उसको पता चलता है कि यह वह चीज़ नहीं, जिसकी खोज में वह व्याकुल था।