वह कौन सौभाग्यशाली लोग हैं, जो परलोक में ईश्वर के प्रिय बंदे होंगे। यह वह लोग हैं, जो अपने सेल्फ (स्वयं) के ख़ोल को तोड़कर ईश्वर के सेल्फ़ में गुम हो जाने पर सहमत हो गए।
शरीर में अगर ऐसा रक्त डाला जाए, जो आदमी के रक्त समूह का न हो तो शरीर उसे स्वीकार नहीं करता। उसके अंदर तुरंत शरीर में प्रतिरोधक उत्पन्न हो जाते हैं और वह रक्त बाहर निकाल दिया जाता है। इसी प्रकार जले व कटे हुए शरीर के हिस्से पर निरोपण (Grafting) होता है, जिसकी सुरक्षित स्थिति यह है कि स्वयं अपने शरीर की त्वचा लेकर क्षतिग्रस्त स्थान पर लगा दी जाए, जिसको स्वनिरोपण कहते हैं।
अब अगर किसी स्थान पर त्वचा का निरोपण करना है और वहाँ किसी असंबद्ध शरीर की त्वचा लेकर लगा दी गई हो तो वह कुछ दिन ठीक रहेगी, लेकिन एक हफ़्ते के अंदर शरीर इसके अनजानेपन को पहचान लेगा। रक्त का प्रवाह इस स्थान पर रुक जाएगा और अंततः त्वचा का वह टुकड़ा अलग होकर गिर जाएगा। इसका वर्णन करते हुए प्रोफ़ेसर विलियम बॉइड ने अपनी पैथोलॉजी की किताब में लिखा है कि अपनापन परायेपन को स्वीकार नहीं करता।
Self will not accept non-self.
यह छोटे सेल्फ़ (इंसान) के स्वाभिमान का उदाहरण है। इसी पर बड़े सेल्फ़ (ईश्वर) के सम्मान और स्वाभिमान का अनुभव किया जा सकता है। वास्तविकता यह है कि ईश्वर सभी स्वाभिमानियों से अधिक स्वाभिमानी और सभी अद्वितीयवादियों (Unparalleled) से अधिक अद्वितीयवादी है। ईश्वर किसी भी स्थिति में किसी भी प्रकार से अनेकेश्वरवाद सहन नहीं कर सकता। वह हर दूसरी ग़लती को माफ़ कर देगा, लेकिन अनेकेश्वरवाद को कभी माफ़ नहीं करेगा।
वह कौन सौभाग्यशाली लोग हैं, जो परलोक में ईश्वर के प्रिय बंदे होंगे। यह वह लोग हैं, जो अपने सेल्फ (स्वयं) के ख़ोल को तोड़कर ईश्वर के सेल्फ़ में गुम हो जाने पर सहमत हो गए, जो अपनी या किसी दूसरे की अद्वितीयता को भुलाकर ईश्वर की अद्वितीयता के आगे झुक गए, जिन्होंने हर तरह के अनेकेश्वरवाद को छोड़कर शुद्ध एकेश्वरवाद को धारण कर लिया।
इंसान के लिए हालाँकि यह बड़ा कठिन कार्य है कि वह अपने अलावा किसी दूसरे को स्वीकार करे। जब भी कोई आदमी किसी दूसरे को मानता हुआ नज़र आए तो वह या तो डर के आधार पर होगा या किसी युक्ति के आधार पर। फिर भी यही वह देना है, जो कोई इंसान कभी किसी को नहीं देता। इसी की माँग इंसान के रचयिता ने इंसान से की है और इसी का नाम इस्लाम है।
मुस्लिम वही है, जो अपने स्व की संपत्ति अपने रचयिता को देने पर सहमत हो जाए। जो अपने आपको पूरी तरह ईश्वर को सौंप दे। जो हर दृष्टि से ईश्वर के आदेश के अधीन बन जाए।
इसमें कोई संदेह नहीं कि यह इंसान के लिए असहनीय को सहन करना है, लेकिन इसी को ईश्वर ने अपने स्वर्ग का मूल्य बना दिया है। स्वर्ग की अनोखी कृपा उसी भाग्यशाली के हिस्से में आएगी, जो इस अनोखे अनुदान के रूप में इसका मूल्य प्रस्तुत कर दे।