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30 जून 1985 ग्वालियर के लिए एक ऐतिहासिक दिन था आज यहां के फौजी हवाई अड्डे पर विशेष चहल पहल थी। इसका कारण यह था कि भारत ने फ्रांस से जो आधुनिक सैनिक विमान मिराज 2000 खरीदा था उसको भारतीय हवाई सेना में शामिल करने की रस्म यहां अदा की जाने वाली थी।
भारत के बारहवें एयर चीफ मार्शल एल.एम. कत्री (1927-1985) आज बहुत खुश दिखाई दे रहे थे। उन्होंने इस समारोह में पूरे उत्साह के साथ भाग लिया। लेकिन एयर चीफ मार्शल इस शानदार समारोह से दिल्ली वापस लौटे थे कि उन पर दिल का दौरा पड़ा। उन्हें तेज़ी से फौजी अस्पताल ले जाया गया जहां चन्द घंटे बाद पहली जुलाई 1985 को उनका देहांत हो गया।
ख़बरों में बताया गया कि एयर चीफ़ मार्शल एल. एम. कत्री योग्यतम पायलट थे। उन्होंने कई लड़ाइयों में दुश्मन के ख़िलाफ़ हवाई लड़ाई का शानदार रिकार्ड कायम किया था। लेकिन दुश्मन के युद्ध विमानों को मार गिराने वाला शख़्स मौत के खामोश हमले का मुकाबला न कर सका। वह आदमी जिसने आसमान में उड़ कर युद्ध में विजय हासिल की थी वह ज़मीन पर मौत के ख़िलाफ़ जंग में इस तरह पराजित हो गया जैसे उसके मुकाबले के लिए उसके पास कोई ताक़त ही नहीं।
ताकत और बेताक़ती का यह मुक़ाबला हर रोज किसी न किसी रूप में ज़मीन पर दिखाई देता है। रोज़ कोई ‘एयर चीफ़ मार्शल’ मौत के ख़ामोश हमले के मुकाबले में एकतरफा शिकस्त खा जाता है। और इस तरह अपने तजुर्बे के रूप दूसरों के लिए एक ऐलान करता एक हक़ीक़त का ऐलान कि इन्सान एक ऐसी दुनिया में है जहां हर जीत आख़िरकार एक मुकम्मल हार पर ख़त्म होती है। ज़िन्दगी इख़्तियार से बेइख़्तियारी की तरफ़ सफ़र है। मौत आदमी को इसी हक़ीक़त की ख़बर देती है। लेकिन यही खबर है जो आज किसी को मालूम नहीं।