अजीब करिश्मा
इन्सान का जिस्म कुछ माद्दी और भौतिक चीज़ों मिल कर बना है। पानी, कार्बन, ऑक्सीजन और कुछ दूसरे रासायनिक तत्व। ज़ाहिरी तौर पर इन्सान बस इसी क़िस्म को कुछ चीज़ों का मजमूआ है। राबर्ट पैटिसन (R. Pattison) ने इन्सानी जिस्म के इन भौतिक तत्वों का हिसाब लगाया तो उसने पाया कि बाज़ार के रेट के लिहाज़ से इनकी क़ीमत साढ़े छः डालर है। यानी हिन्दुस्तानी सिक्के में क़रीब सौ रुपये।
लेकिन इसी ‘सौ रुपये’ के सामान से अल्लाह तआला ने ऐसा अनमोल आदमी बनाया है, जो इतना क़ीमती है कि सिक्के में उसकी क़ीमत तय नहीं की जा सकती। सौ खरब रुपये भी एक इन्सान की क़ीमत नहीं हो सकते।
इन्सान के बेहद क़ीमती होने का अन्दाज़ा उस वक़्त होता है जबकि उसका कोई अंग उससे छीन लिया जाए। इन्सान का एक हाथ कट कर उससे अलग हो जाए अरबों डालर अदा करके भी दोबारा वैसा हाथ उसको नहीं मिल सकता। इन्सान की आंख अगर बेनूर हो जाए तो सारी दुनिया की दौलत भी उसको वह आंख नहीं दे सकती, जिससे वह दोबारा देखने लगे। इन्सान की ज़ुबान अगर जाती रहे तो कोई भी क़ीमत अदा करके वह बाज़ार से ऐसी चीज़ नहीं पा सकता, जिससे वह बोले और अपने ख़यालात का इज़हार कर सके।
कैसी अजीब है ख़ुदा की कारीगरी कि वह बेक़ीमत चीज़ों से बेइन्तिहा क़ीमती चीज़ बनाता है। वह मुर्दा चीज़ को ज़िन्दा चीज़ में तब्दील करता है। वह बेशऊर, बेजान माद्दे से बाशऊर और जानदार मख़्लूक़ वजूद में लाता है। वह ‘नहीं’ से ‘है’ की रचना करता है।
किसी जादूगर की छड़ी से एक पत्थर कोई आवाज़ निकाले तो उसको देख कर सारे लोग हैरान रह जाएंगे। लेकिन ख़ुदा बेशुमार इन्सानों को माद्दे से बना कर खड़ा कर रहा है। मगर उसको देख कर किसी को हैरानी नहीं होती। कैसे अंधे हैं वे लोग, जिनको जादूगर के करिश्मे दिखाई देते हैं, मगर ख़ुदा के करिश्मे दिखाई नहीं देते। कैसे बेअक़्ल हैं वे लोग जो झूठे करिश्मे दिखाने वालों के सामने सम्पूर्ण श्रद्धा बन जाते हैं। मगर जो हस्ती सच्चे करिश्मे दिखा रही है, उसके लिए उनके अन्दर श्रद्धा व प्रेम का जज़्बा नहीं उमडता।
हक़ीक़त यह है कि इन्सान अगर ख़ुदा को पा ले तो वह उसके करिश्मों में गुम हो जाए। ख़ुदा के सिवा किसी दूसरी चीज़ का उसे होश न रहे।