दो इमकानात के दरमयान
रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम जब दुआ फ़रमाते तो अक्सर इस क़िस्म के अल्फ़ाज़ फ़रमातेः
ऐ दिलों को फेरने वाले, मेरे दिल को अपने दीन पर जमा दे। हज़रत आयशा ने एक रोज़ सुना तो कहाः ऐ ख़ुदा के रसूल, आप यह दुआ बहुत करते हैं। इसकी क्या वजह है? आपने फ़रमायाः
हर आदमी का दिल अल्लाह की उंगलियों में से दो उंगली के बीच होता है। जब वह उसको सीधा करना चाहता है तो सीधा कर देता है और जब वह उसको टेढ़ा करना चाहता है तो टेढ़ा कर देता है। (मुसनद अहमद, हदीस नंबर 17630)
इससे मालूम होता है कि कोई भी शख़्स गुमराही के ख़तरे से ख़ाली नहीं। हर आदमी को हर वक़्त अपने ईमान की हिफ़ाज़त करनी है। हर वक़्त अल्लाह से यह तौफ़ीक़ मांगनी चाहिए कि वह उसको फिसलने से बचाए। जिस पल अल्लाह की तौफ़ीक़ आदमी का साथ छोड़ देगी उसी पल वह गुमराही की घाटी में भटक जाएगा। आदमी हर पल हिदायत और गुमराही के बीच है और सिर्फ़ अल्लाह की मदद ही उसको सही राह पर क़ायम रख सकती है।