कहा जाता है कि प्राचीन यूनान में एक खगोल विज्ञानी हुआ है, जिसे एरिसटेरकस के नाम से जाना जाता है। उसकी मृत्यु 230 ईसा पूर्व में हुई। उसने सौरमंडल का अध्ययन किया और शायद पहली बार सूर्य-केंद्रीय (heliocentric) खगोलीय मॉडल का दृष्टिकोण प्रस्तुत किया अर्थात् यह कि सूरज केंद्र में है और पृथ्वी उसके गिर्द घूम रही है, लेकिन उसके दृष्टिकोण को लोगों के बीच लोकप्रियता प्राप्त न हो सकी। उसके बाद टॉलेमी पैदा हुआ। उसका युग दूसरी सदी ईo है। टॉलेमी ने उसके विपरीत भू-केंद्रीय (geocentric) खगोलीय मॉडल का दृष्टिकोण प्रस्तुत किया अर्थात् यह कि पृथ्वी केंद्र में है और सूरज इसके गिर्द घूम रहा है।
टॉलेमी के भू-केंद्रीय खगोलीय मॉडल का विचार ईसाइयों को अपनी उस आस्था के ठीक अनुसार महसूस हुआ, जो उन्होने ईसा मसीह के बाद बनाया था और इन मान्यताओं को स्वीकृति की अंतिम मुहर 325 ईo में एशिया माइनर के शहर निक़ाया (Nicaea) की प्रसिद्ध चर्च परिषद में दी गई।
कॉन्सटेंटाइन महान (280 ईo से 337 ईo) के ईसाई धर्म स्वीकार करने के बाद ईसाइयत सारे रोमन साम्राज्य में फैल गई और ईसाई धर्म आधिकारिक राजधर्म बन गया, जिससे इसे ज़बरदस्त शक्ति प्राप्त हो गई। अब ईसाइयों ने टॉलेमी के भू-केंद्रीय खगोलीय मॉडल के दृष्टिकोण का विशेष समर्थन व बचाव किया और एरिसटेरकस के दृष्टिकोण को पूरी तरह से अंधकार में डाल दिया। एनसाइक्लोपीडिया ब्रिटानिका (1984) के शब्दो में—
“इसके बाद उस ब्रह्मांड विज्ञान (cosmology) में और आगे चिंतन-मनन का अवसर शेष न रहा। 17वीं सदी के अंत तक लगभग हर जगह यही दृष्टिकोण पढ़ाया जाता रहा।”
“There was no further scope for cosmology in the model, which continued to be taught and used almost everywhere until the 17th century.”
[Encyclopaedia Britannica (1984), Vol. 18, p. 1013]
मुसलमान जो अपवित्र को पूज्य-पवित्र समझने की ग़लती में शामिल नहीं थे‚ उन्होंने इस मामले पर खुले ज़हन के साथ ख़ालिस बौद्धिक और वैज्ञानिक अंदाज़ में विचार किया और उन्होंने पाया कि सूर्य-केंद्रीय खगोलीय मॉडल का दृष्टिकोण अधिक बुद्धिसंगत है‚ इसलिए उन्होंने इसे स्वीकार कर लिया।
एडवर्ड मैक्नॉल बर्न्स ने इस विषय पर चर्चा करते हुए लिखा है कि यह दृष्टिकोण कि सूरज हमारे सौर परिवार के केंद्र में है‚ अब एक सिद्ध घटना बन चुकी है। यह दृष्टिकोण सबसे पहले सैमोस के एरिसटेरकस (310-230 ईसा पूर्व) ने प्रस्तुत किया था, लेकिन लगभग चार सौ साल बाद एरिसटेरकस का दृष्टिकोण दब गया और टॉलेमी का भू-केंद्रीय खगोलीय मॉडल का दृष्टिकोण लोगों के ज़हन पर हावी हो गया। उसके बाद 12 सौ साल से भी अधिक अवधि तक टॉलेमी का दृष्टिकोण सारी दुनिया में लोगों के मनो-मस्तिष्क पर छाया रहा। 1496 ईo में कोपरनिकस ने बताया कि धरती हमारे खगोलीय मॉडल का केंद्र नहीं है। खगोलीय अध्ययन और खोज के बाद कोपरनिकस इस नतीजे पर पहुँचा कि ग्रह सूरज के गिर्द घूमते हैं, लेकिन चर्च के विरोध के डर से वह अपनी खोज के नतीजों को प्रकाशित करने से 1543 ईo तक रुका रहा।
स्पेन के मुसलमानों ने किसी और विषय का इतना विकास नहीं किया, जितना विज्ञान का। सच तो यह है कि इस क्षेत्र में उनकी सफलताएँ बहुत ही उत्कृष्ट थीं, जो अब तक देखी नहीं गई थीं। स्पेन के मुसलमान खगोल विज्ञान, भौतिक विज्ञान, गणित, रसायन विज्ञान और चिकित्सा में विशिष्ट एवं असाधारण बौद्धिक योग्यता रखते थे। अरस्तू के प्रति सम्मान के बावजूद वे इससे नहीं हिचकिचाए कि वे उस दृष्टिकोण पर टिप्पणी करें कि पृथ्वी ब्रह्मांड का केंद्र है। उन्होंने इस संभावना को स्वीकार किया कि पृथ्वी अपने अक्ष (axis) पर घूमती हुई सूरज के गिर्द घूम रही है।
Despite their reverence for Aristotle, they did not hesitate to criticize his notion of a universe of concentric spheres with the earth at the centre, and they admitted the possibility that the earth rotates on its axis and revolves around the sun.
[Edward McNall Burns, Western Civilization (W.W. Norton & Company Inc, New York, 1955), p. 36]
सौरमंडल के बारे में मुसलमानों का सही दृष्टिकोण तक पहुँचना केवल इसलिए संभव हो सका कि इस्लाम ने चिंतन-मनन की पाबंदी के उस वातावरण को तोड़ दिया, जो इंसान के लिए मानसिक और बौद्धिक विकास में बाधा बना हुआ था। नक़ली और बनावटी बंधनों के समाप्त होते ही मानवीय चिंतन-मनन का समूह तेज़ी से विकास-यात्रा करने लगा और अंत में उस शानदार वैज्ञानिक युग तक पहुँचा, जहाँ वह वर्तमान सदी में हमें नज़र आ रहा है।