मानवाधिकारों की विश्वव्यापी घोषणा

संयुक्त राष्ट्र संघ (UNO) ने 1948 में वह चार्टर अर्थात् वह अधिकार-पत्र स्वीकृत किया, जिसेद यूनिवर्सल डिक्लेरेशन ऑफ़ ह्यूमन राइट्सकहा जाता है। इसके आर्टिकल-18 में यह कहा गया है

“हर आदमी को सोच-विचार, मन, अंतरात्मा और धर्म की स्वतंत्रता का अधिकार है। इस अधिकार में यह स्वतंत्रता भी सम्मिलित है कि आदमी अपने धर्म या आस्था को बदल सके और अपने धर्म या आस्था को या तो अकेले या दूसरों के साथ मिलकर और खुलेआम या गुप्त रूप से प्रकट कर सके या दूसरों को इसकी शिक्षा दे।

संयुक्त राष्ट्र संघ का वह चार्टर जिसका सार ऊपर के लेख में है, वह भी वास्तव में संयुक्त राष्ट्र का कारनामा नहीं, बल्कि उसी इस्लामी क्रांति की एक देन है, जो संयुक्त राष्ट्र से एक हज़ार वर्ष से भी अधिक पहले अस्तित्व में आई थी।

इस्लाम ने इतिहास में पहली बार अनेकेश्वरवाद पर आधारित उस व्यवस्था-प्रणाली को समाप्त किया, जिसने इंसान और इंसान के बीच अंतर व भेदभाव की सोच पैदा कर दी थी। इसी ग़लत बँटवारे का परिणाम अन्यायों से भरा ऊँच-नीच का समाज था, जो सभी प्राचीन युगों में लगातार पाया जाता रहा है।

इस्लाम ने एक ओर इस मामले में मानवीय सोच को बदला, दूसरी ओर उसने बहुत बड़े पैमाने पर व्यावहारिक क्रांति करके इंसानी आज़ादी और सम्मान का एक नया युग शुरू किया। यह क्रांति इतिहास में लगातार यात्रा करती रही, यहाँ तक कि वह यूरोप में प्रविष्ट हो गई और उसे अपने प्रभाव में ले लिया। सदियों की यात्रा में यह क्रांति मज़बूती के साथ आगे बढ़ती रही और अंततः स्वतंत्रता और लोकतंत्र की आधुनिक क्रांति का कारण बनी। आधुनिक यूरोप की लोकतांत्रिक क्रांति उसी इस्लामी क्रांति का धर्मनिरपेक्ष या सेकुलर एडिशन है, जिसे बहुत पहले 7वीं सदी के अरब में ईश्वर के अंतिम पैग़ंबर ने पहली गति दी थी।

ऐतिहासिक पृष्ठभूमि में देखा जाए तो यह सच्चाई सामने आएगी कि इस्लाम ही आधुनिक युग का वास्तविक निर्माता है, वैज्ञानिक दृष्टिकोण से भी और सामाजिक व आर्थिक दृष्टिकोण से भी।

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इबादत : एक ईश्वर की पूर्ण समर्पण भाव एवं निष्ठा से भक्ति एवं उपासना करना।

पैग़ंबर : ईशदूत; ईश्वर द्वारा नियुक्त व्यक्ति, जिसने ईश्वर का संदेश लोगों तक पहुँचाया।

दाअी : ईश्वर का संदेश लोगों तक पहुँचाने वाला व्यक्ति।

फ़रिश्तों : ईश्वर का वह दूत, जो उसकी आज्ञानुसार काम करता है।

हदीस : हज़रत मुहम्मद के कथन, कर्म एवं मार्गदर्शन।

कुफ़्र : ईश्वर का इंकार करना।

वह्य : ईश्वर का वह संदेश, जो पैग़ंबरों को फ़रिश्ते जिब्रील द्वारा भेजा जाता था।

क़यामत : सृष्टिके अंत और विनाश का दिन।

सुन्नत : तरीक़ा, पद्धति; वह काम जो हज़रत मुहम्मद ने किया हो।

ख़लीफ़ा : पैग़ंबर-ए-इस्लाम हज़रत मुहम्मद के उत्तराधिकारी का पद।

ख़लीफ़ा-ए-राशीदून : पैग़ंबर-ए-इस्लाम हज़रत मुहम्मद की मृत्यु के पश्चात बारी-बारी से उनके उत्तराधिकार को सँभालने वाले शुरुआती चार ख़लीफ़ाओं अबू बक्र, उमर, उस्मान और अली कोख़लीफ़ा-ए-राशीदूनकहा जाता है।

तक़वा : ईश्वर के प्रति अपार श्रद्धा तथा भय रखते हुए दुष्कर्मों एवं बुराइयों से परहेज़ करना।

क़िब्ती : मिस्र की पुरानी जाति।

सीरत : हज़रत मुहम्मद की जीवनी।

Maulana Wahiduddin Khan
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