विज्ञान के लिए आवश्यक है कि चीज़ों की प्रकृति और विशेषता जानने के लिए उन पर प्रयोग के माध्यम से उनका ध्यानपूर्ण अवलोकन और अनुभव किया जाए, लेकिन प्राचीन समुदायों में इसका माहौल मौजूद न था। चूँकि ईश्वर के सिवा दूसरी चीज़ों में भी पवित्रता की विशेषता है, ऐसा मानने के कारण यह हुआ कि सभी चीज़ें लोगों की दृष्टि में पवित्र, पूज्य और रहस्यमय हो गईं। इसके परिणामस्वरूप हर जाति और समुदाय के अंदर जादू, अंधविश्वास और ईश्वर के सिवा दूसरी चीज़ों, प्राणियों और व्यक्तियों को पवित्र तथा पूज्य मानने का आम रिवाज हो गया।
यह मानसिकता और सोच, चीज़ों की जाँच-पड़ताल और वैज्ञानिक ढंग की खोज एवं जाँच-प्रयोग (scientific research) के कामों में रुकावट बन गई। अगर लोगों के ज़हन में यह विश्वास बैठा हुआ हो कि घटनाएँ जादू के बल पर होती हैं या चीज़ों में रहस्यमय ढंग की दैवी या ईश्वरीय विशेषताएँ छुपी हुई हैं तो ऐसी स्थिति में उनके अंदर जाँच-पड़ताल की मानसिकता नहीं उभर सकती। ऐसी स्थिति में वही चीज़ उभरेगी, जिसे बर्ट्रेंड रसेल ने जादू और अंधविश्वास से स्पष्ट किया है।
प्राचीनकाल के अरब स्वयं भी इसी प्रकार के अंधविश्वास में सम्मिलित थे। यह अंधविश्वास दूसरे समुदायों की तरह स्वयं उनके लिए भी मानसिक विकास की राह में रुकावट बना हुआ था। इस्लाम के माध्यम से जब उनके अंदर बौद्धिक क्रांति आई तो उनके बीच से यह मानसिक रुकावट (mental block) समाप्त हो गई। अब वे चीज़ों को केवल चीज़ के रूप में देखने लगे, जबकि इससे पहले हर चीज़ उन्हें पवित्र, पूज्य और रहस्यमय दिखाई दे रही थी। यही वह वैचारिक क्रांति है, जिसने अरबों में पहली बार वैज्ञानिक सोच पैदा की और इसमें तरक़्क़ी करके वे सारी दुनिया के लिए उस चीज़ को देने वाले बने, जिसे आधुनिक समय में विज्ञान कहा जाता है।