क़ुरआन से मालूम होता है कि सभी पैग़ंबरों का संदेश सिर्फ़ एक था। उन्होंने हर युग के लोगों से यह कहा कि एक ईश्वर की इबादत करो‚ उसके सिवा तुम्हारा कोई इलाह (God) नहीं।
अरबी शब्दकोष ‘मफ़रादात’ में इमाम राग़िब ने 'इलाह’ का अर्थ बताया है— ‘हैरान होना’ या ‘हैरत में पड़ जाना’। अरबी भाषा की सबसे प्रसिद्ध डिक्शनरी ‘लिसान अल-अरब’ में ‘इलाह’ शब्द का वास्तविक अर्थ ‘हैरान होना’ है। यह मन की उस हालत को दर्शाता है, जो ईश्वर की महानता और पवित्रता के अहसास व समझ से बंदे के अंदर पैदा होती है। शब्द अल्लाह (ईश्वर) इसी इलाह से बना है, क्योंकि बुद्धि इसकी कल्पना और विचार से आश्चर्य में पड़ जाती है।
‘इलाह’ का मतलब वह एक ही हस्ती है, जो आश्चर्य की हद तक महान हो तथा जिसके कमाल और सर्वश्रेष्ठता को सोचकर आदमी आश्चर्य में पड़ जाए। इसी से पवित्रता का विश्वास पैदा होता है। पवित्रता का अर्थ किसी चीज़ का वह रहस्यमय गुण और विशेषता है, जो मानवीय समझ और कल्पना से परे उसे बुलंद और श्रेष्ठ बना देती है। ‘इलाह’ वह है, जो पूरी तरह से पाक और पवित्र हो‚ जिसके आगे व्यक्ति अपनी पूरी हस्ती के साथ झुक जाए तथा जो हर प्रकार की कमी और बुराई से दूर हो।
इस अर्थ में केवल एक ईश्वर ही इलाह है। इसके सिवा न कोई इलाह है और न ही किसी भी दर्जे में कोई उसके साथ ख़ुदाई (ईश्वरत्व) में साझीदार या सहभागी है। वास्तविक इलाह को इलाह (ईश्वर) मानना सारी भलाइयों का स्रोत है, जबकि नक़ली और बनावटी इलाह को इलाह मानना सारी बुराइयों की जड़ है।