प्राचीनकाल में जिन प्राकृतिक चीज़ों को ईश्वरीय विशेषताओं का धारक समझ लिया गया था, इनमें से एक नदी भी थी। नदियों के बारे में यह विश्वास था कि उनके अंदर रहस्यमय प्रकार की ईश्वरीय आत्मा पाई जाती है। यही आत्मा नदियों को चलाती है और नदियों को इंसान के लिए लाभकारी या हानिकारक बनाती है।
[Encyclopaedia Britannica (1984), Vol. 17, p. 129]
प्राचीन यूनान में स्कमनड्रोस नदी के बारे में यह विश्वास था कि वह वंश बढ़ाने, प्रजननशीलता और पैदावार की योग्यता रखती है । इसलिए चौथी सदी ईसा पूर्व का एक यूनानी वक्ता एस्किंस जो एक एथेनियन राजनेता था, कहता है कि हमारी लड़कियाँ शादी से पहले इस पवित्र नदी में नहाती हैं और कहती हैं, “स्कमनड्रोस, मेरे कुँवारेपन को स्वीकार कर।” कई देशों में ऐसी जादुई रस्म और संस्कार निभाने का रिवाज रहा है, जिसमें नदी का पानी महिला को गर्भवती बनाने के लिए प्रयोग किया जाता था।
[Encyclopaedia Britannica (1984), Vol. 12, p. 882]
नदियों को पवित्र मानने के कारण यह हुआ कि लोग नदियों को पूजने लगे। वे उनके नाम पर चढ़ावा, बलि और क़ुरबानी प्रस्तुत करने लगे। इस प्रकार नदियों की पवित्रता की आस्था ने नदियों के बारे में जाँच-पड़ताल और खोज की मानसिकता को पैदा नहीं होने दिया।
लोग नदियों को पवित्र और पूजनीय देवी के रूप में देखते थे, न कि एक साधारण प्राकृतिक और भौगोलिक घटना के रुप में, जिसे एक सादा मानवीय उपाय और योजना के माध्यम से प्रयोग किया जा सके। यही कारण है कि प्राचीनकाल में नदियों के पानी का प्रयोग कृषि के क्षेत्र में बहुत ही सीमित रहा। सिंचाई का इतिहास आश्चर्यजनक रूप से इंसान के आधुनिक इतिहास से संबंध रखता है।
इस्लाम के माध्यम से जब एकेश्वरवाद की क्रांति आई और इंसान यह बात जान गया कि नदी एक रचना या सृजन है, न कि सृष्टिकर्ता या रचयिता। वह एक रचना है, न कि ईश्वर। इसके बाद ही यह संभव हुआ कि इंसान बड़े पैमाने पर नदियों को अपने लाभ के लिए प्रयोग करने की बात सोच सके। यही कारण है कि हम इतिहास में यह पढ़ते हैं कि स्पेन के मुसलमानों ने जितने बड़े पैमाने पर सिंचाई की विकसित प्रणाली को स्थापित किया, उसका कोई दूसरा उदाहरण उनसे पहले किसी अन्य जाति में देखने को नहीं मिलता।
स्पेन के मुसलमानों ने कृषि के काम में इतनी उन्नति की कि वह एक नियमित विज्ञान बन गया। उन्होंने पेड़-पौधों का अध्ययन किया और मिट्टी की विशेषताओं की जानकारी प्राप्त की। स्पेन की लाखों वर्ग मील की धरती जो वीरान पड़ी हुई थी, मुसलमानों ने उसे फलदार वृक्षों और लहलहाते हुए खेतों के रूप में बदल दिया। यह एक शानदार हरित क्रांति थी।
प्रोफ़ेसर फिलिप के० हिट्टी लिखते हैं—
स्पेन के मुसलमानों ने नहरों का निर्माण किया और अंगूर की खेती की तथा साथ में दूसरे पौधों और फलों, चावल, ख़ूबानी, आड़ू, अनार, संतरा, गन्ना, कपास और ज़ाफ़रान की खेती की शुरुआत की। प्रायद्वीप (peninsula) के दक्षिण-पूर्वी मैदानी क्षेत्र, जो अच्छी जलवायु और मिट्टी के क्षेत्र थे, ग्रामीण और शहरी गतिविधियों के महत्वपूर्ण केंद्र के रूप में विकसित हुए। यहाँ गेहूँ और अन्य अनाज के साथ-साथ ज़ैतून तथा कई प्रकार के फलों की खेती को किसानों द्वारा विकसित किया गया, जिन्होंने मालिकों के साथ हिस्सेदारी पर खेतों में काम किया।
स्पेनी कृषि को अरबों ने जो उन्नति दी, उसकी चर्चा करते हुए प्रोफ़ेसर हिट्टी ने लिखा है—
यह कृषि की उन्नति मुस्लिम स्पेन की शानदार उपलब्धियों में से एक थी और वह इस देश के लिए अरबों का एक स्थायी उपहार था। स्पेनी बगीचे आज भी उनकी निशानी के रूप में सुरक्षित हैं।
This agricultural development was one of the glories of Moslem Spain and one of the Arab’s lasting gifts to the land, for Spanish gardens have preserved to this day a ‘Moorish’ imprint.
(History of the Arabs, p. 528)
चावल, गन्ना, रुई, ज़ाफ़रान, अनार, आड़ू, सफ़्तालू आदि जो वर्तमान स्पेन में बहुतायत पाए जाते हैं, वह स्पेनिश मुसलमानों के माध्यम से ही स्पेन को मिले। उन्होंने अंदलुसिया और इसाबेला के सूबों में ज़ैतून (olive) और ख़ुरमा (bitter orange) की खेती में बहुत उन्नति की। ग़रनाता और मालागा के क्षेत्र में अंगूरों की पैदावार बड़े पैमाने होने लगी।
फ़्रांसीसी लेखक चार्ल्स सिनोबोस ने लिखा है कि स्पेनी अरबों ने नहरों के माध्यम से सिंचाई के तरीक़े को अपनाया। उन्होंने बड़े-बड़े कुएँ खुदवाए। जिन लोगों ने पानी के नए स्रोतों की खोज की, उन्हें बड़े-बड़े इनाम दिए गए। स्पेन में सिंचाई के लिए बड़ी-बड़ी नहरें बनवाईं और फिर उनसे छोटी-छोटी शाख़ें निकालीं। इसी कारण वैलेंसिया का बंजर मैदानी क्षेत्र हरा-भरा और फलदार क्षेत्र बन गया। उन्होंने नहर और सिंचाई का स्थायी विभाग स्थापित किया, जिससे नहरों पर सिंचाई के बारे में हर प्रकार की जानकारी प्राप्त की जा सकती थी।
बर्ट्रेंड रसेल ने मुस्लिम स्पेन का ज़िक्र करते हुए लिखा है कि अरब अर्थव्यवस्था की असाधारण विशेषताएँ उनकी कृषि थी। विशेष रूप से उनका बहुत ही विशिष्ट रूप में सिंचाई व्यवस्था का स्थापित करना, जिसे उन्होंने अपने रेगिस्तानी जीवन से सीखा था, जहाँ पानी की बहुत कमी थी। स्पेनी कृषि आज तक अरब सिंचाई व्यवस्था से लाभ उठा रही है।
One of the best features of the Arab economy was agriculture, particularly the skillful use of irrigation, which they learnt from living where water is scarce. To this day Spanish agriculture profits by Arab irrigation works.
[Bertrand Russell, A History of Western Philosophy, p. 416]
यह एक सच्चाई है कि स्पेन में जो मुसलमान गए, वहाँ उन्होंने एक ऊँचे स्तर की हरित क्रांति (green revolution) स्थापित की। वहाँ उन्होंने खेतों और बाग़ों की सिंचाई की ऐसी व्यवस्था स्थापित की, जिसका उदाहरण उनसे पहले के इतिहास में देखने को नहीं मिलता। आश्चर्य की बात है कि बर्ट्रेंड रसेल ने उनकी इस उपलब्धि को रेगिस्तानी क्षेत्रों के उनके पिछले जीवन से जोड़ दिया। यह स्पष्टीकरण और व्याख्या अनुचित है। सच्चाई यह है कि उनकी इस उपलब्धि का वास्तविक कारण वह एकेश्वरवादी क्रांति था, जिसने अरबों की मानसिकता को पूरी तरह से बदल दिया।
इसके पहले लोग नदियों, जल-स्रोतों और समुद्रों को ईश्वर के रूप में देखते थे। वे उन्हें श्रद्धा और सम्मान की चीज़ समझते थे, न कि प्रयोग, खोज और जाँच की चीज़। अरबों ने अपनी बदली हुई मानसिकता के तहत उन चीज़ों को रचना के रूप में देखा। उन्होंने उन्हें इस दृष्टि से देखा कि वे किस प्रकार उन्हें अपने काम में लाने के लिए अपने अधीन करें। यही वह मानसिक क्रांति है, जिसने अरबों को इस योग्य बनाया कि वे सिंचाई और कृषि की दुनिया में ऐतिहासिक कारनामा अंजाम दे सके।
रेगिस्तानी जीवन, जहाँ पानी कम पाया जाता हो, वहाँ सिंचाई के नियम और सिद्धांत किस प्रकार सीखे जा सकते हैं। बर्ट्रेंड रसेल को अरबों की इस विशेषता का सही स्रोत मालूम न था, इसलिए बिल्कुल निराधार और असंबद्ध तौर पर उसने इसे उनकी रेगिस्तानी और बिना पानी की ज़िंदगी से जोड़ दिया। हालाँकि सही तौर पर यह उनकी उस मानसिक और आत्मिक क्रांति से जुड़ता है, जो विशुद्ध एकेश्वरवाद के माध्यम से उनके अंदर पैदा हुई थी। सिंचाई और कृषि का यह कारनामा एकेश्वरवादी जीवन का परिणाम था, न कि वह रेगिस्तानी जीवन का परिणाम।