विज्ञान की उन्नति के लिए स्वतंत्रता के साथ जाँच-पड़ताल और खोज का वातावरण बहुत आवश्यक है, लेकिन प्राचीनकाल में इंसान की अपनी बनाई हुई कई प्रकार की बेबुनियाद मान्यताओं और आस्थाओं के कारण इस प्रकार का वातावरण बेहद दुर्लभ था। प्राचीनकाल में बार-बार ऐसा हुआ कि एक प्रतिभाशाली और बुद्धिमान व्यक्ति चिंतन-मनन करते हुए किसी सच्चाई तक पहुँचा, लेकिन जब उसने अपनी खोज और विचार लोगों के सामने प्रस्तुत किए तो लोग उसके विचारों को अपनी अंधविश्वासी आस्थाओं के विरुद्ध पाकर उसके विरोधी ही नहीं, बल्कि शत्रु बन गए। परिणाम यह हुआ कि उसका चिंतन-मनन और अधिक आगे न बढ़ सका।
प्राचीनकाल में नए विचारों के दमन का सबसे बदनाम उदाहरणों में से एक उदाहरण है प्रसिद्ध यूनानी दार्शनिक सुकरात (Socrates) के लिए सज़ा का आदेश, जिसमें सुकरात को ज़बरदस्ती ज़हर का प्याला पिलाकर उसकी हत्या कर दी गई। उसका अपराध यह था कि वह उन देवताओं को नज़रअंदाज़ करता है और उनकी उपेक्षा करता है, जिन्हें एथेंस शहर के लोग पूजते हैं। लोग उस पर इल्ज़ाम लगाते हैं कि वह धर्म में नए-नए तरीक़े निकालता है और वह यूनान के युवाओं की मानसिकता को ख़राब कर रहा है। सुकरात की हत्या करने की यह घटना 399 ईसा पूर्व में घटित हुई।
इस प्रकार का एक और उदाहरण 17वीं सदी के इटालियन खगोल विज्ञानी गैलीलियो का है। उसने कोपरनिकस के इस दृष्टिकोण की पुष्टि की कि ग्रह सूर्य की परिक्रमा करते हैं तो रोमन चर्च उसका कड़ा शत्रु बन गया। उस पर धार्मिक अदालत में मुक़दमा चलाया गया। उसे आशंका हो गई कि उसे मृत्यु से कम कोई दंड नहीं दिया जाएगा, इसलिए उसने अपने खगोलीय दृष्टिकोण का परित्याग कर दिया। उसे न्यायिक जाँच से पहले अपने दृष्टिकोण को ग़लत ठहराने के लिए विवश किया गया। उसने रोमन चर्च की अदालत के सामने इन शब्दों में अपने दृष्टिकोण की घोषणा की—
“मैं गैलीलियो‚ उम्र 80 वर्ष, आप लोगों के सामने घुटने टेककर, पवित्र इंजील को गवाह बनाकर और इस पर अपने दोनों हाथ रखकर अपनी ग़लती को स्वीकार करता हूँ और सूर्य के चारों ओर ग्रहों की चाल की सच्चाई के दावे को वापस लेता हूँ‚ इससे इनकार करता हूँ और इस दृष्टिकोण को भद्दा एवं घृणा के योग्य स्वीकार करता हूँ।”
यह कोई अकेली घटना नहीं थी। उस ज़माने में ईसाई विद्वानों का यही आम तरीक़ा था। नई सच्चाइयों की खोज और प्राकृतिक जगत के रहस्यों की तलाश जिसका नाम साइंस है‚ उनको उन्होंने सदियों तक वर्जित बनाए रखा। ऐसी चीज़ों को काला जादू और शैतानी शिक्षा बताया जाता था। इन परिस्थितियों में यह असंभव था कि खोज और जाँच-पड़ताल का काम सफलता के साथ जारी रह सके। मध्ययुग में यह काम पहली बार मुसलमानों के द्वारा शुरू हुआ, क्योंकि क़ुरआन की शिक्षाओं ने उनके दिमाग़ से वह तमाम रुकावटें समाप्त कर दीं, जो गैलिलियो जैसे लोगों की राह में आड़े आ रही थीं।
इसका एक उदाहरण सौरमंडल (solar system) की परिक्रमा का मामला है। वैज्ञानिक विषयों के मामले में सही दृष्टिकोण का प्रोत्साहन पहली बार इस्लामी क्रांति के बाद हुआ और फिर यह विचारधारा और अधिक विकास करते हुए आधुनिक समय की खोज तक पहुँची।