ज़ीरो का दृष्टिकोण : एक स्पष्टीकरण
नई दिल्ली से 22 पेज की एक अंग्रेज़ी पुस्तक छपी है। वह बच्चों और साधारण पाठकों के लिए है। इसका नाम है— ज़ीरो की कहानी
Dilip M. Salwai, ‘The Story of Zero’, Children’s Book Trust.
इस पुस्तक में बताया गया है कि ज़ीरो का विचार और उसकी खोज भारत में की गई। इससे पहले बड़ी गिनतियों को बताने के लिए कोई आसान तरीक़ा मौजूद न था। एक तरीके के अनुसार, कुछ विशेष गिनतियों के लिए कुछ शब्द तय किए गए थे। उदाहरण के लिए— 1,000 के लिए— सहासरा, 10,000 के लिए— आयोता, 100,000 के लिए— लकशा, 1,000,000 के लिए— कोटी आदि। ज़ीरो के आविष्कार ने गणित के विज्ञान में एक क्रांति पैदा कर दी। अब बड़ी गिनतियों को बताना बहुत ही आसान हो गया।
ब्रह्मगुप्त (598-660 ईo) मुल्तान में पैदा हुए। उन्होंने पहली बार ज़ीरो के प्रयोग की विधि पर काम किया और इसे समझाने का प्रयास किया, लेकिन उनके तरीक़े में कुछ कमी थी। इसके बाद भास्कर (1114-1185 ईo) बीजापुर में पैदा हुए। उन्होंने संस्कृत में एक पुस्तक ‘लीलावती’ लिखी। इस पुस्तक में ज़ीरो के नियम और सिद्धांत का बहुत ही सरल शैली में वर्णन किया गया था।
आर.के. मूर्ति (R. K. Murthi) ने इस पुस्तक पर समीक्षा और टिप्पणी करते हुए लिखा है कि यह बात हमारे राष्ट्रीय स्वाभिमान के अहसास को बढ़ाती है कि ज़ीरो का नज़रिया हिंदुस्तान में पैदा हुआ।
“It boosts our sense of national pride to note that the zero was conceived of in India.”
[The Times of India (New Delhi), January 30, 1989, p. 6]
लेखक इस पुस्तक के माध्यम से अपने पाठकों को बताते हैं कि हिंदुस्तानी गिनती सबसे पहले हिंदुस्तान से स्पेन में प्रविष्ट हुई, फिर वह इटली, फ्रांस, इंग्लैंड और जर्मनी पहुँची। हिंदुस्तानी गिनती को पश्चिम में पूरी तरह स्वीकार कर लिया गया। उनका हिंदुस्तानी गिनती को अपनाया जाना गणित और विज्ञान के लिए एक महत्वपूर्ण और निर्णायक मोड़ सिद्ध हुआ।
“The Indian numbers first entered Spain, then Italy, France, England and Germany… Indian numbers were accepted completely… Their adoption turned out to be the turning point in the history of mathematics and science.”
[Dilip M. Salwai, Story of Zero (New Delhi)]
यह सही है कि ज़ीरो का विचार आरंभिक रूप में हिंदुस्तान में पैदा हुआ, लेकिन यह सही नहीं कि वह हिंदुस्तान से सीधे पश्चिमी दुनिया में पहुँचा। यह तरीक़ा अरबों के माध्यम से पश्चिमी दुनिया में पहुँचा था। यही कारण है कि पश्चिम में इसे हिंदुस्तानी गिनती के बजाय ‘अरबी गिनती’ (Arabic Numerals) कहा गया। एनसाइक्लोपीडिया ब्रिटानिका (1984) का कहना है, “अरबी अंक अर्थात् ज़ीरो से लेकर नौ तक की गिनती की शुरुआत हो सकता है कि हिंदुस्तान में हुई हो, लेकिन पश्चिमी दुनिया में वह अरब के रास्ते से पहुँची।”
Arabic Numerals— the numbers 0,1,2,3,4,5,6,7,8,9 they may have originated in India, but were introduced to the western world from Arabia.
[Encyclopaedia Britannica (1984), Vol. I, p. 469]
एनसाइक्लोपीडिया ब्रिटानिका में दूसरी जगह वर्णन है—
यूरोप के सुशिक्षित और विद्वान वर्ग तक यह अंक-प्रणाली 9वीं सदी के अरब गणितज्ञ अल-ख़्वारिज़्मी के लेखों के माध्यम से पहुँची। अल-ख़्वारिज़्मी ने हिंदुस्तानी गिनती के नियम और सिद्धांत को अरबी में लिखा। फिर यह अरबी पुस्तक लैटिन भाषा में अनूदित होकर यूरोप तक पहुँची।
[Encyclopaedia Britannica (1984), Vol. 10, p. 817]
बर्ट्रेंड रसेल ने लिखा है कि मुहम्मद इब्न मूसा अल-ख़्वारिज़्मी जो गणित और खगोल विज्ञान की संस्कृत पुस्तकों के अनुवादक थे, उन्होंने 830 ईo में एक पुस्तक प्रस्तुत की। 12वीं सदी में इस पुस्तक का अनुवाद अरबी से लैटिन भाषा में ‘Algoritmi de numero Indorum’ के नाम से किया गया। यही वह पुस्तक थी, जिसके माध्यम से पश्चिम ने पहली बार उस चीज़ को जाना, जिसे हम ‘अरब अंक-प्रणाली’ कहते हैं। हालाँकि वास्तव में इसे ‘हिंदुस्तानी अंक-प्रणाली’ कहना चाहिए। इसी लेखक (अल-ख़्वारिज़्मी) ने ‘अल-जबरा’ पर एक पुस्तक लिखी, जो 16वीं सदी तक पश्चिम में पाठ्यक्रम की पुस्तक के रूप में प्रयोग की जाती रही।
[Bertrand Russell, A History of Western Society (London, 1984), p. 416]
ज़ीरो का दृष्टिकोण हालाँकि हिंदुस्तान में बना, लेकिन कई सौ वर्ष तक इसे स्वयं हिंदुस्तान में पहचान और मान्यता प्राप्त नहीं मिली। हिंदुस्तान में भी इसकी लोकप्रियता उस समय बढ़ी, जबकि सबसे पहले अरबों ने और फिर यूरोप ने इसे अपना लिया। एनसाइक्लोपीडिया ब्रिटानिका का शोध-लेखक लिखता है कि यह खोज, जो शायद हिंदुओं ने की, गणित के इतिहास में बड़ी महत्ता रखती है। हिंदू साहित्य इस बात की गवाही देता है कि ज़ीरो, संभव है कि ईसा मसीह के जन्म से पहले मालूम रहा हो, लेकिन इस प्रतीक या चिह्न के साथ ऐसा कोई भी अभिलेख या पांडुलिपि नहीं पाई गई है, जो 9वीं शताब्दी से पहले की हो।
“The invention, probably by the Hindus, of the digit zero, has been described as one of the greatest importance in the history of mathematics. Hindu literature gives evidence that the zero may have been known before the birth of Christ, but no inscription has been found with such a symbol before the ninth century.”
[Encyclopaedia Britannica (1984), Vol. I, p. 1175]
यह बात सही है कि ज़ीरो को प्रयोग करने का विचार और समझ सबसे पहले एक हिंदुस्तानी मस्तिष्क के अंदर पैदा हुई, लेकिन उस समय हिंदुस्तान में संभव की सीमा तक अनेकेश्वरवाद और अंधविश्वास का बोलबाला था। हर चीज़ के साथ रहस्यमय आस्थाएँ जुड़ गई थीं। नई चीज़ों और नए आविष्कारों को घृणा और अप्रसन्नता की दृष्टि से देखा जाता था। यही वह कारण रहे कि प्राचीन हिंदुस्तान में ज़ीरो के विचार का आदर नहीं हुआ और उसे आम स्वीकार्यता प्राप्त नहीं हुई। वह एक व्यक्ति की एकमात्र खोज बनकर रह गया, जो सामाजिक मान्यता और लोकप्रियता के स्तर तक नहीं पहुँचा।
इस्लाम ने जब अनेकेश्वरवाद और अंधविश्वास के वातावरण को समाप्त किया तो वहाँ जिस प्रकार दूसरी नई चीज़ों का स्वागत हुआ, उसी प्रकार ज़ीरो के विचार का भी स्वागत किया गया। घर पर उपेक्षित हिंदुस्तान के बीज को उपजाऊ धरती मुस्लिम बग़दाद में मिली। वहाँ वह पेड़ बना और फिर मुसलमानों ही के माध्यम से स्पेन पहुँचकर यूरोप में फैल गया।